एक बार की बात है, एक कंपनी में काम करने वाला एक अनुभवी प्रबंधक, विवेक जी, अपनी टीम को एक विशेष संदेश देना चाहते थे। उन्होंने एक मीटिंग में मुस्कुराते हुए कहा:
"अगर
आप दो फैक्ट्रियाँ बना
लें, तो मैं आपको
तीसरी मुफ्त में दूँगा।"
टीम
हैरान थी। फैक्ट्रियाँ? किस
चीज़ की?
विवेक
जी ने समझाया:
पहली
फैक्ट्री – शक्कर की फैक्ट्री अपनी ज़ुबान पर।
"जब आप मीठे और
विनम्र शब्दों में बात करते
हैं, तो सामने वाला
आपकी बात को आसानी
से समझता है—even अगर वह 'ना'
हो। कठोर सच्चाई भी
अगर सही शब्दों में
कही जाए, तो वह
प्रेरणा बन जाती है।"
दूसरी
फैक्ट्री – बर्फ की फैक्ट्री अपने दिमाग में।
"कभी-कभी जानकारी देर
से आती है, या
हालात बिगड़ जाते हैं। लेकिन
अगर आप अपना आपा
खो बैठते हैं, तो समाधान
और भी मुश्किल हो
जाता है। शांत रहकर,
समझदारी से प्रतिक्रिया देना
ही असली नेतृत्व है।"
टीम
मुस्कुरा रही थी, अब
बात समझ में आ
रही थी।
विवेक
जी ने अंत में
कहा:
"अगर
आप ये दो फैक्ट्रियाँ बना लें, तो तीसरी फैक्ट्री—संतोषजनक परिणाम—मैं आपको मुफ्त में दूँगा।"
उस दिन से टीम
ने अपने व्यवहार में
मिठास और सोच में
ठंडक लाना शुरू कर
दिया। और सचमुच, परिणाम
बेहतर हुए, सहयोग बढ़ा,
और माहौल सकारात्मक हो गया।
सीख:
मीठे शब्द और शांत
सोच, किसी भी टीम
को सफलता की ओर ले
जा सकते हैं। यही
है असली नेतृत्व और
भावनात्मक बुद्धिमत्ता।
"मीठे
शब्द दिल जीतते हैं, और शांत सोच रास्ते खोलती है। जो इन दोनों को साध ले, वही सच्चा नेता बनता है।"
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