Friday, September 12, 2025

हर जुलाई की खामोशी: उम्मीदों की अगली दस्तक

 राहुल एक मेहनती और समर्पित कर्मचारी था। हर साल जुलाई उसके लिए खास होती थीप्रमोशन की उम्मीद, नई जिम्मेदारियाँ, और घर में जश्न का माहौल। उसके बच्चे भी जान गए थे कि "पापा की जुलाई" कुछ अलग होती है। मिठाई आती थी, मुस्कानें बिखरती थीं, और एक गर्व की चमक होती थी उसकी आँखों में।

लेकिन इस बार जुलाई आई... और चली भी गई।
ना कोई कॉल आया, ना कोई बधाई।
राहुल ने खुद को समझाया — "शायद इस बार नहीं, अगली बार सही।"

पर अंदर कुछ टूट-सा गया था।
घर में भी सबने खामोशी को महसूस किया।
बच्चों ने पूछा नहीं, पत्नी ने मुस्कुराने की कोशिश की,
पर राहुल जानता थाइस बार कुछ अधूरा रह गया।

कुछ दिन उदासी में बीते, लेकिन फिर एक शाम राहुल ने अपनी डायरी खोली।
उसने लिखा:

"हर बार की तरह इस बार भी मेहनत की थी,
पर शायद इस बार सीखने की बारी थी।
सीखकि सफलता सिर्फ पद से नहीं,
संघर्ष से भी मिलती है।
और अगली जुलाई फिर आएगी,
शायद तब सिर्फ प्रमोशन नहीं,
एक नई पहचान भी मिलेगी।"

उसने फिर से काम में खुद को झोंक दिया
इस बार सिर्फ प्रमोशन के लिए नहीं,
बल्कि खुद को साबित करने के लिए।

 

सीख:
हर खामोशी एक संदेश होती है।
हर अधूरी उम्मीद एक नई शुरुआत की दस्तक देती है।
अगर इस बार नहीं मिला, तो अगली बार ज़रूर मिलेगा
बस विश्वास बनाए रखना है।

 

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