Friday, October 3, 2025

📖 पुस्तक समीक्षा : यार पापा

 📖 पुस्तक समीक्षा : यार पापा

लेखक – दिव्य प्रकाश दुबे

1. किताब का सार

यार पापा” पिता–पुत्र के रिश्ते को केंद्र में रखकर लिखी गई किताब है। यह उपन्यास हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जिन पिताओं को हम अक्सर केवल एक provider (कमाने वाले, अनुशासनप्रिय) की भूमिका में देखते हैं, वे भी इंसान हैं, जिनके अपने सपने, डर, इच्छाएँ और अधूरे ख्वाब रहे हैं।

यह किताब पिता को एक friend के रूप में देखने और उनके साथ रिश्ते को और गहरा करने का रास्ता दिखाती है।

 

2. कहानी की खूबसूरती

  • सरल भाषा : दिव्य प्रकाश दुबे की शैली बहुत सहज है। ऐसा लगता है मानो कोई अपना ही व्यक्ति बैठकर दिल की बातें कर रहा हो।
  • भावनाओं की गहराई : किताब में कई जगह पाठक को अपनी निजी यादें याद आती हैं – बचपन के दिन, पापा की डांट, उनकी खामोश फिक्र, और वह अनकहा प्यार।
  • दोस्ती का नजरिया : लेखक यह बताना चाहते हैं कि “पापा से दोस्ती” रिश्तों की सबसे खूबसूरत शक्ल हो सकती है।

 


3. किताब क्यों खास है?

  • पिता की अनसुनी कहानियाँ और उनका अनदेखा पक्ष सामने लाती है।
  • पिता के त्याग और सपनों को नए अंदाज़ में पेश करती है।
  • यह पढ़ते हुए पाठक हँसता भी है और कई बार आँखें भी नम हो जाती हैं।
  • आज की पीढ़ी और पापा की पीढ़ी के बीच पीढ़ीगत अंतर (generation gap) को पाटने की कोशिश करती है।

 

4. लेखक की शैली

दिव्य प्रकाश दुबे की लेखनी बहुत conversational है, जैसे कोई दोस्त या परिवार का सदस्य आपकी ही भाषा में आपसे बातें कर रहा हो। उनकी ताकत है – साधारण चीज़ों को असाधारण तरीके से बयान करना

 


5. निष्कर्ष

यार पापा” एक ऐसी किताब है जिसे पढ़ने के बाद हर कोई अपने पिता को नए नज़रिए से देखेगा। यह सिर्फ़ एक उपन्यास नहीं, बल्कि यादों, भावनाओं और रिश्तों का आईना है।

📌 यह किताब खास तौर पर उन लोगों के लिए ज़रूरी है –

  • जो अपने पापा से ज्यादा बात नहीं कर पाए।
  • जो अपने पापा की कहानियाँ सुनना चाहते हैं।
  • जो रिश्तों की गहराई को महसूस करना चाहते हैं।

 👉 कुल मिलाकर, यार पापा” पाठकों को अपने पिता से दोस्ताना रिश्ता बनाने का संदेश देती है।