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Tuesday, August 9, 2011

दर्द तुझे भी होता है ना



जब सूनी तन्हा रातों में
सब खाली खाली लगता होगा
बात किसी से करने को जब
पास न कोई होता होगा
याद तो मेरी आती होगी
दिल में टीस तो कोई उठती होगी
पत्थर दिल तो तू भी नहीं
दर्द तुझे भी होता होगा

राहों में देख कभी मुझे
तू भी घंटो सोचती होगी
तकिए में छुपा चेहरा अपना
तू भी घंटो रोती होगी
हो जाए सब पहले जैसा
एक आस तो मन में उठती होगी
चोट तो तूने भी खायी है
दर्द से तू भी रोती होगी

न शिकवे किए तूने कुछ
न कभी मेरे सुने
फिर क्यूँ बता तो एक बार
छोड़ तूने अपने, गैर चुने
कर याद उन बीतें लम्हों को
जेहन तेरा भी सिहर उठता है ना
एक बार बता दे, चाहे चुपके से
दर्द तुझे भी होता है ना
दर्द तुझे भी होता है ना
दर्द तुझे भी होता है ना




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