अंजन.... कुछ दिल से
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
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Tuesday, August 9, 2011
कैसे जीं पाएंगे...
मैंने सुना था...
लोग पीते है, बस पिने के लिए...
पर अब जाके जाना है...
कुछ लोग पीते है, बस...जीने के लिए...
मैंने माना,
ना पिए तो मर ना जायेंगे...
पर किसी की याद में तनहा, कैसे जीं पाएंगे...
किसी की याद में तनहा, कैसे जीं पाएंगे...
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