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Friday, December 25, 2009

राज पिछले जन्म का।

एनडीटीवी इमेजिन पर एक कार्यक्रम आ रहा है, जिसका नाम है-राज पिछले जन्म का। हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है। इसलिए जाहिर है, इस कार्यक्रम को देखने वाले दर्शक हर बार एक नए अनुभव को सुनने-देखने के लिए बेताब रहते हैं। मेरे कुछ परिचित तो इस कार्यक्रम से इतने प्रभावित हुए हैं कि मुझसे आग्रह कर रहे हैं कि उन्हें भी मैं किसी तरह इस कार्यक्रम में स्थान दिला दूँ ताकि वे जान सकें कि वे पिछले जन्म में क्या थे।

मैंने अपने परिवार के अनुरोध पर इस कार्यक्रम के दो एपिसोड देखे। एक मोनिका बेदी Monica Bedi Exclusive Pictures !! वाला और एक शेखर सुमन वाला। मुझे सारा मामला सम्मोहन का लगा, लेकिन फिर भी किसी के अनुभव और विश्वास पर सवाल उठाने वाला मैं कौन होता हूँ।

शेखर सुमन पिछले जन्म में स्कॉटलैंड में रहने वाले एक सैनिक थे। उनके घर में किसी ने आग लगा दी थी, जिसमें उनके बच्चे की जल जाने से मौत हो गई थी। इस जन्म में शेखर सुमन के बच्चे की एक गंभीर रोग में मृत्यु हो चुकी है। शेखर सुमन बताते हैं कि उनका बच्चा आग से डरता था। इसी बात को आधार बनाकर पिछले जन्म में उनके घर में लगी आग और उसमें बच्चे की मृत्यु की घटना का इस जन्म से संबंध स्थापित किया जाता है। चूँकि पिछले जन्म में बच्चा आग से मरा था, इसलिए इस जन्म में आग से डरता था।

पुनर्जन्म के दावों पर काफी काम हुआ है लेकिन विज्ञान पुनर्जन्म को नहीं मानता। पश्चिमी चैनलों ने इस पर अनेक कार्यक्रम बनाए हैं, जिनमें व्यक्ति के तथाकथित पिछले जन्म की तह तक पहुँचने की कोशिश की गई है। कुछ पुनर्जन्म की संभावना को रेखांकित करते हैं।

जिन दो एपिसोड की मैंने बात की है, उसमें पहले वाले एपिसोड में शेखर सुमन कहते हैं कि मेरी वर्तमान पत्नी की आँखें वैसी ही हैं, जैसी पूर्व जन्म में मेरी पत्नी की थीं। तो क्या जो आदमी पूर्व जन्म में पहुँचा दिया गया है और कैमरे के सामने अपने अनुभवों का बयान कर रहा है, उसे यह बोध रहता है कि उसका पुनर्जन्म हो चुका है, जो वह अपनी वर्तमान पत्नी की आँखों का अपनी पूर्व जन्म की पत्नी की आँखों से मिलान कर रहा है? क्या किसी व्यक्ति की स्मृति स्वायत्त नहीं होती?

वह इंटरनेट की तरह संसार की सारी मानवीय स्मृतियों से जुड़ी रहती है? और क्या एक जीवन की स्मृति से दूसरे जीवन की स्मृति तक जाया जा सकता है? और दूसरे ही क्यों तीसरे, चौथे, पाँचवें आदि में क्यों नहीं?

 

किसी को दशकों पुरानी घटना याद रहती है लेकिन परसों क्या सब्जी खाई थी, यह याद नहीं रहता? बहरहाल मनुष्य ने क्लोन बनाकर पुनर्जन्म की अवधारणा को सबसे बड़ी चुनौती दी है। विज्ञान ने यह संभव बना दिया है कि आप हूबहू अपना जीता-जागता प्रतिरूप बना सकते हैं। तो जिसका निर्माण आदमी कर रहा है, उसका तो पुनर्जन्म भी नहीं ही हो रहा है।

 

पिछले जन्म में प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति यह क्यों नहीं कहता कि मैं पहले साँप था, मेंढक था या छिपकली था। क्या मनुष्यों की आत्मा का ही मनुष्यों के सारे शरीरों पर एकाधिकार है? अगर हिमयुग में कुछ नहीं था तो इतनी सारी आत्माएँ अचानक कहाँ से आ गईं?

अगर हिमयुग कुछ नहीं था तो इतनी सारी आत्माएँ अचानक बाद में कहाँ से गईं, क्योंकि कहते हैं कि सभी जीवों में आत्मा का वास होता है और आत्मा कभी मरती नहीं। उसे आग जला सकती है और अस्त्र काट सकते हैं। अजब गड़बड़झाला है।

पुनर्जन्म के इस तरह के कार्यक्रम, जाहिर है हमारी जिज्ञासाएँ शांत नहीं करते, वे हमारा मनोरंजन करते हैं। वे मनुष्य को अंधविश्वासी, जाहिल, भाग्यवादी और अकर्मण्य बनाते हैं।

पिछले दिनों इस कार्यक्रम के प्रसारण के बाद दिल्ली Click here to see more news from this city के एक हिंदी अखबार की संवाददाता पुनर्जन्म में ले जाने वाले एक विशेषज्ञ के पास गई। वह विशेषज्ञ उसे पुनर्जन्म में ले जाने की कोशिश में हार गया। उसने संवाददाता से कहा-आप पुनर्जन्म में नहीं जा सकतीं। आपका आत्मबल बहुत ऊँचा है। इस संवाददाता को सम्मोहित ही नहीं किया जा सकता।

मुझे यह खबर पढ़कर बड़ा मजा आया। मेरी आत्मा खिल उठी, वो नहीं जो नया शरीर धारण करती है, बल्कि वो जो इस शरीर के साथ जुड़ी है और इस शरीर की तरह ही सबसे अलग और विशिष्ट है और जिसका इस शरीर के साथ ही अंत हो जाएगा, क्योंकि मेरी समझ में शरीर से पृथक कोई सत्ता है ही नहीं। और अगर है तो साइंस उसे स्वीकार नहीं करता।

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