रमाशंकर यादव, जिन्हें उनके उपनाम 'विद्रोही' से भी जाना जाता है, वे केवल एक कवि नहीं थे; वे विद्रोह के एक जीवंत प्रतीक, असंतोष के भाट और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग थे। उनका जीवन, जिसका अंत उसी परिसर में हुआ जिसे उन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक छोड़ने से इनकार कर दिया, अपने आप में एक शक्तिशाली कविता है—जो उग्रवादी विचारधारा, सत्ता विरोधी उत्साह और मौखिक परंपरा की शक्ति का एक प्रमाण है।
🔥 विद्रोही की यात्रा: गाँव से विश्वविद्यालय तक
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के एक गाँव में 1957 में जन्मे, रमाशंकर यादव की जेएनयू तक की
यात्रा सत्ता के साथ शुरुआती टकरावों से चिन्हित थी। छात्र राजनीति में अपनी
भागीदारी के कारण उन्हें उनके लॉ कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था, जो उनके विद्रोही स्वभाव का
संकेत था।
वह 1980 के दशक में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए जेएनयू
आए थे। हालांकि, 1983 में, एक बड़े छात्र आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें
निष्कासित कर दिया गया। पर रमाशंकर यादव के लिए, कागज़ का एक टुकड़ा उनके मार्ग
को निर्देशित नहीं कर सकता था। उन्होंने परिसर छोड़ने से साहसपूर्वक इनकार कर दिया, और 2015 में अपनी मृत्यु तक पहाड़ियों, ढाबों और छात्र संघ कार्यालय को
अपना स्थायी पता बना लिया।
📝 वह एक योद्धा थे जिसने अपनी
लड़ाई भले ही हार दी हो, पर लड़ना जारी रखा। वे झुकने को तैयार नहीं थे; यह एक तरह से उनका राजनीतिक, वैचारिक उत्साह था।
🗣️ ढाबे के भाट: जनता की कविता
रमाशंकर यादव सच्चे अर्थों में 'जनता के कवि' थे। उनका प्राथमिक मंच कोई
साहित्यिक उत्सव नहीं, बल्कि गंगा ढाबा की देहाती पत्थर की बेंचें
थीं—जो जेएनयू के राजनीतिक और बौद्धिक जीवन का केंद्र था।
- मौखिक
परंपरा: वह मुख्य रूप से मौखिक परंपरा के कवि थे, जो अपनी
कविताएँ हिंदी और अवधी में रचते थे और उन्हें एक कच्ची, शक्तिशाली
ऊर्जा के साथ सुनाते थे। वह अक्सर कहते थे, "अगर मैं
अपनी कविताएं लिखूँ और सारा काम खुद करूँ, तो मेरे साथियों के लिए
क्या काम बचेगा?"
- प्रगतिशील
आवाज़: उनकी कविता धार्मिक अंधविश्वास, लैंगिक
भेदभाव, आर्थिक असमानता और राज्य के दमन की एक सीधी, निर्भीक
आलोचना थी। उनकी विचारधारा वामपंथ में मजबूती से निहित थी, जिसमें
कबीर, नागार्जुन, कार्ल मार्क्स और बर्टोल्ट
ब्रेख्त जैसे व्यक्तियों का बार-बार उल्लेख होता था।
- श्रमिक
वर्ग का सौंदर्यशास्त्र: उन्हें अपनी सामाजिक पहचान
'अहीर' (दूधवाला) होने पर गर्व था, वे अपने
समुदाय की कार्य संस्कृति—'दूध', 'दही', 'भैंस'—से
समृद्ध बिम्ब खींचते थे, और इस प्रकार 'श्रमिक
वर्ग की कविता का एक नया, जैविक काव्य
सौंदर्यशास्त्र' रचते थे।
उनकी सबसे प्रसिद्ध और उत्तेजक कविताओं में से एक, 'मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी', सभ्यता की पितृसत्तात्मक नींवों
पर कठोर आरोप लगाती है।
🕊️ एक अमर आत्मा
रमाशंकर यादव का जीवन, भले ही भौतिक रूप से गरीब था, लेकिन दृढ़ विश्वास और सिद्धांत
में समृद्ध था। उनका अस्तित्व समाज के मानदंडों के खिलाफ एक निरंतर, जीवंत विरोध था। 2015 में, उन्होंने छात्रों के 'ऑक्युपाई यूजीसी' विरोध प्रदर्शन में भाग लेते
हुए दुनिया को अलविदा कहा, जो उन असंतुष्ट युवाओं के साथ एकजुटता का उनका अंतिम
कार्य था जिन्हें उन्होंने प्रेरित किया था।
उनके जीवन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री, 'मैं तुम्हारा कवि हूँ', इस जटिल, विलक्षण और अत्यंत सिद्धांतवादी
व्यक्ति के सार को दर्शाती है जिसका जीवन उनकी कविता की एक सतत गूंज था। रमाशंकर
यादव 'विद्रोही' जेएनयू के इतिहास में एक अमर प्रतीक बने हुए हैं—यह
एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि सच्चा विद्रोह केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका
है।