पुस्तक समीक्षा: दीवार में एक खिड़की रहती थी
लेखक:
विनोद कुमार शुक्ल
शैली: उपन्यास
प्रकाशन वर्ष: 1996
कहानी
का सार
यह उपन्यास जीवन की सीमाओं
और संभावनाओं पर गहन चिंतन
है। कहानी में दीवार एक
प्रतीक है—बंदिशों, कठिनाइयों
और जीवन की जटिलताओं
का। वहीं खिड़की उम्मीद,
रोशनी और नए अवसरों
का प्रतीक है। लेखक साधारण
घटनाओं के माध्यम से
यह दिखाते हैं कि हर
कठिनाई में एक रास्ता
छिपा होता है, बस
हमें उसे पहचानना होता
है।
लेखन
शैली
- भाषा अत्यंत सरल, लेकिन अर्थ गहरे।
- ग्रामीण जीवन और मानवीय भावनाओं का सूक्ष्म चित्रण।
- प्रतीकों और रूपकों का सुंदर प्रयोग—दीवार और खिड़की जीवन के संघर्ष और आशा का रूपक बन जाते हैं।
मुख्य
संदेश
- जीवन में चाहे कितनी भी दीवारें हों, हर दीवार में एक खिड़की होती है।
- उम्मीद और अवसर हमेशा मौजूद रहते हैं, हमें उन्हें खोजने की दृष्टि चाहिए।
पसंद
आने वाले पहलू
- लेखक की संवेदनशीलता और कल्पनाशीलता।
- साधारण बातों में गहरे अर्थ खोजने की क्षमता।
कमज़ोरियाँ
- धीमी गति के कारण कुछ पाठकों को धैर्य की आवश्यकता होगी।
- प्रतीकात्मकता कभी-कभी बहुत सूक्ष्म हो जाती है, जिससे अर्थ पकड़ना कठिन हो सकता है।
रेटिंग
⭐⭐⭐⭐☆
(4/5)
यह पुस्तक उन लोगों के
लिए है जो साहित्य
में गहराई और जीवन दर्शन
खोजते हैं।
YouTube Link- https://www.youtube.com/watch?v=NfTy0yX_yj0
No comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव