Sunday, December 18, 2016

क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

जीवन निर्झर में बहते किन
अरमानों की बात करूं
तुम्‍हीं बता तो प्रियवर मेरे
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भाव निचोड़ में कड़वाहट से
या हृदय शेष की अकुलाहट से
किस राग करूण का गान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

भ्रमित पंथ के मधुकर के संग
या दिनकर की आभा के संग
किस सौरभ का पान करूं
क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

उजड़े उपवन के माली से
प्रस्‍तुत पतझड़ की लाली से
किस हरियाली की बात करूं

क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं

2 comments:

Shailendra S. said...

बहुत दिनों बाद कुछ पढ़ने की इच्छा हुई तो तुम्हारा ब्लॉक खोला यह कविता पढ़ी। मर्मस्पर्शी हृदयस्पर्शी भावों को सजाएं बेहद ही मन को लुभाने वाली, अपनी पीड़ा और बेचैनी को बयां करती कविताएं है 👌👍

Shailendra S. said...

👍

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