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Friday, July 20, 2012

विचारो की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है,काव्य

 

समाज एवं जीवन के अलग अलग हालातों को देखने के बाद विचारो की अभिव्यक्ति का जो सफर चलता है और जो उड़ान होती है ,उन सब को अल्फाजों में ढालने का  सशक्त माध्यम है काव्य' जिसने दुनिया को खूबसूरत अल्फाजों से तर बतर कर दिया है

 

 मनुष्‍य के मन-मस्तिष्‍क में जब उथल पुथल उत्‍पन्‍न होता हैतो  काव्य की पृष्‍ठभूमि तैयार होती है और जब वह काव्य ,अक्षरों और शब्‍दों  का  रूप लेता हैतो कविता मूर्त रूप ग्रहण करती है।

 यह उथल पुथल कई कारणों से उत्‍पन्‍न हो सकता है। यह वैयक्तिक भी हो सकता हैसामाजिक भी।

 काव्य के रूप में कवि,प्रकृति का सौंदर्यजीवन की परिस्थितियांभूख ,विषाद,उम्‍मीद,जीवन,आत्म-विस्वास ,जिंदगी ,प्यार ,बेवफा,दोस्त,गाव,यादें,धोखा और आस अन्य कई विषयों में अपने भाव व्यक्त करता है कभी काव्य में भूख और गरीबी का चित्रण किया जाता है तो कभी संपन्‍न अघाए वर्ग की संवेदनहीनता पर चोट किया जाता है |कभी भूख से छटपटाते बच्‍चों के करूण क्रंदन तो कभी पिया विरह में करून प्रेम रस का वर्णन किया जाता है !   जीवन की सुख-दुःखभरी नाना अनुभूतियों को लेकर साहित्य में श्रृंगार, हास्य, करुण आदि नव रसों की अवतारणा की गयी है। साहित्य-शास्त्रियों ने अपनी-अपनी रचनाओं में जीवन का तात्त्विक विश्लेषण किया है। साहित्य जब जीवन-धर्मी होता है, तब पाठक और श्रोता के हृदय को विशेष रूप से स्पर्श करता है।

 

कोई विचार आना अलग बात  है और विचारो को काव्य के माध्यम से अपने व लोगो के जेहन में उतारना अलग बात है ,कवि  काव्य में कुछ सवाल करता है , तो जवाब खोजने की जद्दोजहद भी | इनमें वह  कभी व्‍यक्तिगत पीड़ा से रूबरू होता हैतो सामाजिक दुख भी उसकी चेतना को झकझोरता रहता है। इस कठिन समय में कोई संवेदनशील मन भला निजी पीड़ा से ही आप्‍लावित कैसे रह सकता है। कवि के मन में कई प्रश्‍न हैंजिनके उत्‍तर ढूंढने की कोशिश में उसका अंतर्मन बेचैन रहता है 

कश्ती के मुसाफिर ने कभी समंदर नही देखा
बहुत दिनों से  हमनें कोई सिकंदर नहीं देखा

दिखते है  रूप रुपया राज के कदरदान सभी

बहुत दिनों से हमने कोई कलंदर नहीं देखा

लेकिनवह ये भी जानता है कि उन प्रश्‍नों के उत्‍तर खोजनारेत के घरों की नींव ढूंढने जैसा है। फिर भी वह काव्य साधना के माध्यम से कोशिश करता रहता है 

मूल्यों का बिखराव कवि मन को गहरे तक आहत करता है  उसके मन की व्यथा और तल्खियाँ रचनाओ से झांकती है;परन्तु इन तल्खियो में न तो हताशा है और न  परिस्थितियों के सामने समर्पण का पराजय बोध |तस्वीर के तमाम उदास और धुंधले रंगों का बयान तो बड़े ईमानदारी के साथ करने की कोशिश की जाती है  ,पर साथ ही वह  इस तस्वीर को बदलना भी चाहता है    

सोलह रुपये में फुटपातो की पहचान कैसे हो  जाये

अंजन' कुछ करें गरीबी की लक्ष्मण रेखा पार हो जाये

 

कवि मन केवल दुखविषादहताशा ही ब्यक्त नही करता बल्कि अमावस के अंधियारे में रौशनी को ढूंढने का जज्‍बा, मन में  आत्मविश्वास और आशा शब्दों से बयान करने का साहस भी करता है  

 

पंखो के परवाजो को अब जल्द शिखर मिल जाएगा

चाहे लाख तूफा आये दिया और प्रखर जल जाएगा

कुल मिलाकर, काव्य एक संवेदनशील मन की अभिव्‍यक्ति हैं, जिन्‍हें एक आलोचक की दृष्टि से नहीं, एक संवेदनशील पाठक की दृष्टि से देखा जाना चाहिए क्‍योंकि मेरी समझ से इन्‍हें साहित्‍य की प्रचलित आलोचना पद्धति की कसौटी पर कसना कवि और कविताओं, दोनों के साथ न्‍यायसंगत नहीं होगा। केवल तुकबन्दी करने एवं स्थल वर्णन भर कर देने से काव्य की रचना नहीं होती है। भावों एवं विचारों के सुन्दर समन्वय के साथ-साथ रचनात्मकता का सही सन्तुलन सफल रचना की अनिवार्यता है। वर्तमान समय के दमघोटूँ परिवेश एवं भ्रष्ट व्यवस्था ने लोगों के भीतर बेचैनी एवं छटपटाहट पैदा कर दी है। वर्तमान परिवेश ने लोगों की सुरुचि को आहत किया है। ऐसे समय में सफल काव्य  की रचना करना बड़ा ही कठिन होता जा रहा है। केवल कुरुचि को भुनाकर काव्य के द्वारा तालियाँ बजवा लेना आसान है लेकिन लोगों में सुरुचि जगाने वाले कालजयी रचना करना बड़ा ही कठिन है। परन्तु इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सार्थक रचनाएँ हो रही हैं और आगे भी होती रहेंगी

विवेक अंजन श्रीवास्तव 

 मैहर,सतना  

 

 

 

 

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