धन का मोह ऐसा मोह है जिसने कई बार असंख्य लोगों की जान ली है। धन, संपत्ति के लोभ में कोई भी बहुत आसानी से फंस जाता है। धन को इसीलिए ही माया कहा जाता है। इस माया के चक्कर में जो फंसता है उसे परिवार, समाज और दुनिया से मतलब नहीं रह जाता। उसे तो बस धन ही धन दिखाई देता है।
मनुष्य धन के लालच में कई बार ऐसे कर्म कर बैठता है, जिसके लिए जीवन में उसे हमेशा पछताना पड़ता है। धन के नशे के संबंध में एक दोहा बहुत प्रचलित है:
कनक-कनक ते सौ गुनी,
मादकता अधिकाय।।
या खाये बोराय
वा पाए बोराय।।
अर्थात् यहां कनक शब्द के दो अर्थ है, कनक का मतलब सोना और धतूरा (सबसे नशीला फल) धतूरा के नशा उसे खाने के बाद ही होता है परंतु सोना पा लेने से उसका नशा हमारे सिर चढऩे लगता है।
1 comment:
इस माया के चक्कर में जो फंसता है उसे परिवार, समाज और दुनिया से मतलब नहीं रह जाता। उसे तो बस धन ही धन दिखाई देता है।
बिलकुल सही और सार्थक विचार...
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