इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं
दिल की बातो को छुपाना अपनी फितरत नही
वो राजदार और होंगें जो लबों को सीते हैं
वेसे मर चुके हैं सब शहर में अपनी अपनी नजरों में
तो ग़लत क्या हैं गर हम भी मुर्दों में जीते हैं
उन्हें तो शायद इल्म भी नही के सालों गुजर गए
यहाँ तो लम्हें भी गिन गिन के बीते हैं
कहानी बताता हैं कोई अपनी उस चोराहे पर यहाँ
घर तबाह कर के हमारा उन्होंने यहाँ घर ख़रीदे हैं
इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं ! |
जरा देखो मेरे रकीबो के चेहरों की खुशी
ठोकर लगकर गिरा हूँ वो कहते हैं के हम जीते हैं
कोई न बचानें बाला "साहिल" को बुरी आदतों से,
इसलिए रिन्दों में बैठकर भी पी लेते हैं
नशे का शोंक नहीं जो इतनी हम पीते हैं ,
इस मय के सहारे से बस , जी लेते हैं !
साभार: शिव कुमार "साहिल"
2 comments:
दिल की बातो को छुपाना अपनी फितरत नही
वो राजदार और होंगें जो लबों को सीते हैं
विवेक जी....... बहुत ही खुबसुरत रचना है आपकी
हमारे ब्लाग पर भी आए
link :- www.ehsasmyfeelings.blogspot.com
मजा तो जिंदगी भी रखती, अपने किस्म का अलग,
उसी को पीजिये 'मजाल', खांमखां मय क्यों पीतें है ..
शराब को छोड़ कर बाकी सब अच्छा लगा शायरी में , लिखते रहिये ...
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