अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
कौन कहता है अपनी किस्मत अपने हाथ नहींमैंने कर्मों की क़लम से खींची किस्मत रेखा हैआपने आदमी के पल-पल बदलते देखे होंगेमैंने यहाँ पल-पल, आदमी बदलते देखा है
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