थी मुफ़लिसी तो मन को मुझे मारना पड़ा
था जीतने का दम भी मगर हारना पड़ा
फैले हुए वो हाथ भिखारे के देखकर
कितनी ही देर तक मुझे विचारना पड़ा
उतरी नहीं थी बात कभी जो मिरे गले
उसको भी आज दिल तलक़ उतारना पड़ा
जान से अज़ीज़ थे, दिल के क़रीब थे
कितने हसीन थे, जिन्हें बिसारना पड़ा
सब जानते हुए भी मैं नादां बना रहा
वक्त मुझको ऐसा भी गुज़ारना पड़ा
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