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Monday, June 21, 2010

मैंने ज़िन्दगी देखी है

रोज़ रात सजती महफ़िलों में
अक्सर ख़ामोश तनहाई देखी है
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

फ़क़त हँसाना जिनका पेशा है
उनकी आँखों में नमी देखी है
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

इक जनाज़े को कंधा दिया एक दिन
क्या होती है किसी की कमी, देखी है
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

कल तमाम रात रोते हुए गुज़री
सुबह बिस्तर पे फ़िज़ा शबनमी देखी है
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

उन दिनों
जब मैं दर्द से तड़पता था
कई दिलों में सुकूँ
कई चेहरों पे हँसी देखी है॥
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

वो जो दुनिया को ख़ाक़ करने चले थे
जहाँ दबे हैं वे
वो ज़मीं देखी है
सच कहूँ
मैंने ज़िन्दगी देखी है

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