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Sunday, March 21, 2010

प्रेमी पति-पत्नी

एक होती है पत्नी, एक होती है प्रेमिका. दोनों में 'प' अक्षर की समानता है. लेकिन 'प' में 'र' का जुड़ाव नहीं होता. शुरू में शायद होता हो जो विवाह के बाद नज़र नहीं आता.
अक्सर प्रेमी पति-पत्नी बनने के बाद प्रेमी नहीं रहते, ख़रीदी हुई जायदाद की तरह दोनों एक दूसरे के मालिक हो जाते हैं. दोनों एक-दूसरे की क़ानूनी जायदाद होते हैं. जिसमें तीसरे का दाखिला वर्जित होता है. समाज में भी, अदालतों में भी और नैतिकता के ग्रंथों में भी. वह आकर्षण जो शादी से पहले एक-दूसरे के प्रति नज़र आता है, वह कई बार के पहने हुए वस्त्रों की तरह, बाद में मद्धिम पड़ जाता है.

मानव के इस मनोविज्ञान से हर घर में शिकायत रहती है. कभी-कभी यह शिकायत मुसीबत भी बन जाती है. दूरियों से पैदा होने वाला रोमांस जब नजदीकियों के घेरे में आकर हकीक़त का रूप धर लेता है तो रिश्तों से सारी चमक-दमक उतार लेता है. फिर न पति आकाश से धरती पर आया उपहार होता है और न पत्नी का प्यार खुदाई चमत्कार होता है.

हिंदी कथाकार शानी की एक कहानी है, शीर्षक है 'आखें'. इसमें ऐसे ही एक प्रेम विवाह में फैलती एकरसता को विषय बनाया गया है. दोनों पति-पत्नी बासी होते रिश्ते को ताज़ा रखने के लिए कई कोशिशें करते हैं. कभी सोने का कमरा बदलते हैं, कभी एक दूसरे के लिए गिफ्ट लाते हैं, कभी आधी रात के बाद चलने वाली अंग्रेज़ी फ़िल्मों की सीडी चलाते हैं....मगर फिर वही बोरियत...

अंत में कथा दोनों को एक पब्लिक पार्क मे ले जाती है, दोनों आमने-सामने मौन से बैठे रहते हैं. इस उकताहट को कम करने को पति सिगरेट लेने जाता है, मगर जब वापस आता है तो उसे यह देखकर हैरत होती है कि पत्नी से ज़रा दूर बैठा एक अजनबी उसकी पत्नी को उन्हीं चमकती आँखों से देख रहा होता है, जिनसे विवाह पूर्व वह कभी उस समय की होने वाली पत्नी को निहारता था...

अर्थशास्त्र का एक नियम है, वस्तु की प्राप्ति के बाद वस्तु की क़ीमत लगातार घटती जाती है. पास में पानी का जो महत्व होता है, प्यास बुझने के पश्चात वही पानी में उतनी कशिश नहीं रखता.

"पहले वह रंग थी
फिर रूप बनी
रूप से जिस्म में तब्दील हुई
और फिर...
जिस्म से बिस्तर बन के
घर के कोने में लगी रहती है
जिसको कमरे में घुटा सन्नाटा
वक़्त बेवक़्त उठा लेता है
खोल लेता है बिछा लेता है."...



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