अंजन.... कुछ दिल से
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
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Sunday, March 21, 2010
की वो आई चांदनी तेरा नूर चुराने ।
यूँ न निकलो रात की
चांदनी
में नहाने,
कि
वो
आई
चांदनी
तेरा नूर चुराने ।
चाँद
का ये बुलावा
कुछ
नहीं है छलावा
लौट
जाओ
अभी
कर के कोई
बहाने,
की
वो
आई
चांदनी
तेरा नूर चुराने।
कुछ
अलग रात है
राज
की
बात है
राज
की
बात
को
कोई किसे
जाने,
की
वो आई
चांदनी
तेरा नूर
चुराने ।
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