जब से पाया तुमको प्रियतम
भूली मैं सारा संसार
धुंधले स्वपनों की आभा में
देखा तुमको कितनी बार,
परख न पाई तुम्हीं आधार
फंसती जब मैं थी मझधार।
जब से जाना तुमको प्रियतम
मिला नैया को खेवनहार
जब से पाया…
मन मूरख जग संग लिपटा था
बिसर गया था अपना धाम,
अंधकार में भटक रहे थे
निराधार से मेरे प्राण
जब से ढूंढ़ा तुमने प्रियतम
हुआ प्रतिफल निज पथ उजियार
जब से पाया…
लगी थी माया पहरेदार
मेरे उर-बुध्दि के द्वार
न कर पाई तुम्हरी पहचान
आये निकट तुम कितनी बार।
जब से थामा तव कर प्रियतम
खुले इस अन्तरघट के द्वार
जब से पाया…
अपना परिचय आप ही दीन्हा
बांह पकड़ मोहें राह दिखाई
निरख-निरख कर रूप संवारा
निर्भय कर मोहें अधर चढ़ाई
जब अपनाया तुमको प्रियतम
रोम-रोम कर उठा पुकार
जब से पाया…
झूम उठी मैं तव स्पन्दन से
पुलक-पुलक उर सिहर-सिहर तन
भींगी पलके तुम्हें निहार
प्रेम रस से भीगे प्राण।
जब से चाहा तुमको प्रियतम
अपना लगे सारा संसार
जब से पाया तुमको प्रियतम
भूली मैं सारा संसार।
No comments:
Post a Comment