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Sunday, March 21, 2010

मेरे प्रियतम प्यारे,

मन से मनको लिख रही हूँ,

पाती एक अजानी प्रियतम !

पाती मेँ प्रेम - कहानी !

तुम भी हामी भरते जाना, सुनते सुनते बानी ॥

फिर कह रही कहानी !

कहुँ, सुनाऊँ, तुमको प्रियतम,

था राजा या रानी ? सुनोगे क्या ये कहानी ?

सुनो, एक थी रानी बडी निर्मम !

पर थी वह बडी ही सुँदर !

ज्यूँ बन उपवन की तितली !

गर्वीली, मदमाती, बडी हठीली !

एक था राजा, बडा भोला नादानरखता सब जीवोँ पर प्रेम समान !

बडा बलशाली, चतुर, सुजान !

सुन रहे हो तो हामी भरना अब आगे सुनो कहानी !

भोर भए , उगता जब रवि था,

राजा निकल पडता था सुबही को,

साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"

सुनो, सुनो, ये कहानी !

छोड गाँव की सीमा को वह,

जँगल पार घनेरे कर के,आया, जहाँ रहती थी रानी !

अब आगे सुनो, कहानी !

रानी रोज किया करती थीगौरी - व्रत की पूजा,

नियम न था कोई दूजा ~

छिप मँदीर की दीवारोँ से,देखी राजा ने रानी -

मन करने लगा मनमानी !

किसी तरह पाऊँ मैँ इसको,हठ राजा ने ये ठानी !

वह भी तो था अभिमानी !

पलक झपकते रानी लौटी,

लौट चले सखीयोँ के दल

मची राजा के दिल मेँ हलचल !

पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेज कर ,

राजाने देखा मीठा सपना दूर नहीँ होँगेँ दिन ऐसे,

हम जब होँगेँ साजन - सजनी !

रानी ने पर अपमानित करके,

ठुकराया उसका प्रस्ताव !

क्या हो, था ही हठी स्वभाव !

आव न देखा, ताव न देखा,

राजा ने फिर धावा बोला-

अब तो रानी का आसन डोला !

बँदी बन रानी, तब आईँ राजा के सम्मुख गई लाई

कारा गृह मेँ भेज दीया कह, "नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !

ना होगी मेरी ये, रानी ! "

एक वर्ष था बीत चला अब

आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव !

श्री जग्गनाथ का उत्सव !

रीत यही थी, एक दिवस को,

राजा , झाडू देते थे ....मँदिर के सेवक होते थे !

बुढा मँत्री, चतुर सयाना ,

लाया खीँच रानी का बाना कहा,

" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,- पर मेरी हैँ महारानी ! "

कहो कैसी लगी कहानी ?

सेवक राजा की ,सेविका से,

हुई धूमधाम से शादी--

फिर छमछम बरसा पानी !

मीत हृदय के मिले सुखारे

बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !

हा! कैसी अजब कहानी !

जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,

पायेँ नैनन की ज्योति,

प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !

यहाँ न हार किसी की होती !

अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,

कर याद मुझे कभी क्या,

वहाँ, हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?

काश! कि, मैँ वहाँ होती !

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