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Thursday, January 11, 2018

मन के इतवार - गीत गजल

तन तो मेरा है, पर मन पर अधिकार तुम्हारा है।
हर धड़कन में बसी, बस एक पहचान तुम्हारा है।

मेरी साँसों में महकती,
तेरी चाहत की चंदन-सी खुशबू है;
कहने को तो हृदय मेरा है,
पर इसमें धड़कनें सिर्फ़ तेरे नाम की गूंजती हैं।

तेरी आँखों से जो छलकता है
वो प्रेम, वो अपनापन, बस हमारा है।

मेरे गीतों के हर शब्द में,
तेरी पीड़ा की गूंज है समाई;
कलिकाएँ भी महसूस करती हैं,
भ्रमरों की वो मौन रुलाई।

मैं मुरली की वो धुन हूँ
जिसमें हर स्वर तुम्हारा है।

मिलने की चाह बहुत है,
पर समय की दीवारें आड़े आती हैं;
कुछ दोष नियति का भी है,
जो राहें हमें मिलाने से कतराती हैं।

सोम से शनि तक जीवन मेरा है
पर इतवार सिर्फ़ तुम्हारा है।

 

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