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Tuesday, February 23, 2010

दुध्मुहें बच्चे की मां उसे दूध पिलाये बिना सो गई

मौसम बहुत खराब था, घर पर से लाइट चली गई...
आपसे वायदा किया था और हम चल दिए....
सोचा दोस्त की दूकान से मेसेज ही दे देते हैं।
की भाई लेट हो जायेंगे, तो आप फिकर मत करना...
मुझे कहते हो की मेरी फिकर मत करना,
लेकिन ख़ुद तो करते रहते हो....
दोस्त की दुकान तक पहुंचे तो जनरेटर महाराज बंद थे...
मौसम खराब, लाइट नही , और जनरेटर खराब..
इसे कहते है, कंगाली मे आता गीला
आसमान की तरफ़ देखा,
बादल आसमान मे से, मानो अपना गला फाड़ कर चिल्ला रहे थे
फ़िर आसमान रो पड़ा...
आप के जैसे तो न था....
ऊंचे , बहुत ऊंचे
और उस के आंसू सब तरफ़ फ़ैल गए...
और मैं चलता गया,
भीगता गया, चलता गया
एक गाड़ी वाले भाई साहब आए,
गाड़ी रोकी और कहने लगे,
क्यूँ भाई, बीच मे चला रहे हो,
मरना है क्या...
मन मे आया, भाई , जीना कौन कमबख्त चाहता है
जल्दी थी, आप इंतज़ार कर रहे थे....
मन मे आया,
अब नही करने देने वाला इंतज़ार...
बहुत कर चुके हो॥
अब और नही॥
जो सोचोगी , उम्मीद से पहले मिलना चाहिए
निचुड़ते हुए आख़िर , हम आख़िर ऑफिस पहुँच ही गए..
सब से पहले अपनी मेल देखी॥
आप नही थे...
कोई बहुत ज़रूरी काम रहा होगा
सुबह भी जल्दी उठते हो न...
देखता रहा, सोचता रहा, और इंतज़ार करता रहा....
इंतज़ार मैं थे,
जैसे दुध्मुहें बच्चे की मां उसे दूध पिलाये बिना सो गई हो...
और बच्चा इंतज़ार मे है....
मां उसे कैसे छोड़ दे , और बच्चा उसके बगैर जी नही सकता


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