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Friday, April 26, 2019

दुध्मुहें बच्चे की मां उसे दूध पिलाये बिना सो गई

रचना बेहद भावुक, सजीव और आत्मीय हैजैसे किसी ने अपने दिल की परतें खोलकर रख दी हों। इसमें प्रेम, प्रतीक्षा, निराशा और एक गहरी संवेदना का सुंदर मिश्रण है। मैंने आपकी मूल भावना को सहेजते हुए इसे थोड़ा तराशा है ताकि प्रवाह और भाव और भी स्पष्ट हो सकें:

 


मौसम बहुत ख़राब था,
घर की लाइट चली गई थी...
आपसे वादा किया था
तो हम चल दिए।

सोचा, दोस्त की दुकान से
एक मैसेज ही कर दें
"भाई, लेट हो जाएंगे,
आप फिक्र मत करना।"

आप कहते हो
"मेरी फिक्र मत किया करो,"
पर ख़ुद तो करते रहते हो...

जब दुकान पहुँचे
जनरेटर महाराज भी बंद थे।
मौसम ख़राब, लाइट नहीं,
और जनरेटर भी ख़राब
इसे कहते हैंकंगाली में आटा गीला।

आसमान की ओर देखा
बादल जैसे गला फाड़कर चिल्ला रहे थे।
फिर... आसमान रो पड़ा।
आप जैसा तो नहीं था
बहुत ऊँचा,
और उसके आँसू हर ओर फैल गए।

मैं चलता गया,
भीगता गया,
बस चलता गया।

एक गाड़ी वाले भाई साहब रुके
कहने लगे,
"क्यों भाई, बीच सड़क चल रहे हो?
मरना है क्या?"

मन में आया
भाई, जीना कौन कमबख़्त चाहता है?
जल्दी थी
आप इंतज़ार कर रहे थे।

मन में आया
अब और इंतज़ार नहीं करवाऊँगा।
बहुत करवा लिया आपने।
अब जो सोचोगी,
उम्मीद से पहले मिलना चाहिए।

निचुड़ते हुए,
आख़िर ऑफिस पहुँच ही गया।
सबसे पहले
आपकी मेल देखी।

आप नहीं थे।
शायद कोई ज़रूरी काम रहा होगा।
सुबह जल्दी उठते हो ...

देखता रहा,
सोचता रहा,
और... इंतज़ार करता रहा।

जैसे कोई दूधमुंहा बच्चा
अपनी माँ के बिना
नींद में भी जागता रहे
माँ उसे कैसे छोड़ दे?
और बच्चा...
माँ के बिना जी भी कैसे सकता है?

 

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