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Friday, October 2, 2009

जिंदगी और क्या होगी....

हम अक्स्रर रह जाते है तन्हा कभी कहीं इक भीड़ मे
खडे होने की कोशिश करते इक नया दर्द लिए रीड़ मे !
सोच कर कि, जी लेंगे मैखाने मे, ख़ुद को दफन कर के.
जिंदगी और क्या होगी, जी लेंगे जीने कि प्यास को कफन कर के !!

और खुदा से करते है इल्तजा, कि दर्मिया--ख्वाब ना रश्क देना,
देदे हर जख्म चाहे, लेकिन रात के सिरहाने पे यु ना अश्क देना !
पर आफ़ाक जो तुम्हे हो यकीन, तो सी ले ये सिर्फ़ जख्म जहन पर के.
जिंदगी और क्या होगी, जी लेंगे हम मौत का भी जशन कर के !!

 

 

 

   

 

 

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