Tuesday, May 23, 2023

आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...


कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,

ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,

नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,

देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...

Wednesday, May 3, 2023

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार / निदा फ़ाज़ली

"मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार"
👉 यह पंक्ति प्रवासी जीवन की उस पीड़ा को दर्शाती है जहाँ व्यक्ति भले ही दूर हो, लेकिन माँ का स्नेह, उसकी यादें और उसकी ममता हर आँसू में भीगती रहती है।

"दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार"
👉 यह एक गहरी संवेदना है — जब शब्द नहीं होते, तब भी दुःख एक-दूसरे को समझ लेते हैं। यह आत्मीयता और मौन संवाद की शक्ति को दर्शाता है।

"छोटा करके देखिए जीवन का विस्तार"
👉 यह एक दार्शनिक दृष्टिकोण है — जब हम अपने जीवन की अपेक्षाएँ, अहंकार और इच्छाएँ छोटा कर देते हैं, तभी हमें जीवन का असली विस्तार और आनंद मिलता है।

"आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार"
👉 यह पंक्ति जीवन की सुंदरता को सरलता में देखने की प्रेरणा देती है — हमारी आँखों में पूरा आकाश समा सकता है, और हमारी बाहों में पूरा संसार।





मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार


दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार



लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव

हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत

मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत



पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम

जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर

जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर



अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप

जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास

पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास





चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान

मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान