अंजन.... कुछ दिल से
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
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Friday, May 21, 2010
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...
कुछ तमंचे शेष चाकू हो गये,
यार मेरे सब हलाकू हो गये,
ये इलेक्शन में जो हारे हर दफ़ा,
खीझकर चंबल के डाकू हो गये,
नग्न चित्रों का किताबों में था ठौर
दुनिया समझती थी पढाकू हो गये,
देख लो बापू ये बंदर आपके,
आज-कल बेहद लड़ाकू हो गये...
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