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Tuesday, May 18, 2010

परदेस में

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार


दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार



लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव

हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत

मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत



पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम

जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर

जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर



अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप

जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास

पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास





चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान

मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान




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