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Wednesday, May 9, 2018

स्वीकृति- कविता,

कविता एक गहरी आत्मीयता और समर्पण की भावना से भरी हुई हैजैसे किसी आत्मा ने दूसरी आत्मा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया हो। मैंने आपकी मूल भावना को बनाए रखते हुए इसे थोड़ा तराशा है ताकि प्रवाह और भाव और भी स्पष्ट हो सकें:

 

स्वीकृति दी मैंने आज
तुम्हारे हृदय को
मेरे हृदय-स्वर में
थिरकने की स्वीकृति दी मैंने आज।

तुम्हारी स्मृति को
मेरे रक्तिम स्वर्ण-गंगा में
बहने की स्वीकृति दी मैंने आज।

तुम्हारी आत्मा को
मेरे अंत:करण की गहराइयों में
उतरने की स्वीकृति दी मैंने आज।

तुम्हारे स्वर को
मेरे अपूर्ण रचित राग की
अंतिम श्रुति बनने की स्वीकृति दी मैंने आज।

तुम्हारे मन को
मेरे व्यथित मन की पीड़ा
हरने की स्वीकृति दी मैंने आज।

यह मेरे जीवन का
एक अनमोल क्षण है
कि स्वीकृति दी मैंने आज
अपने आपको
तुम्हें अर्पण करने की।

 



Wednesday, May 2, 2018

घर और कहीं था


वो राह कोई और सफ़र और कहीं था
ख्वाबों में जो देखा था वो घर और कहीं था

मैं हो न सका शहर का इस शहर में रह के
मैं था तो तेरे शहर में पर और कहीं था

कुछ ऐसे दुआएं थीं मेरे साथ किसी की
साया था कहीं और शज़र और कहीं था

बिस्तर पे सिमट आये थे सहमे हुए बच्चे
माँ-बाप में झगड़ा था असर और कहीं था

इस डर से कलम कर गया कुछ हाथ शहंशाह
गो ताज उसी का था हुनर और कहीं था

था रात मेरे साथ 'रवि' देर तलक चाँद
कमबख्त मगर वक़्त ए सहर और कहीं था

Thanks- रवीन्द्र शर्मा 'रवि' पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
Details- http://kavita.hindyugm.com/2009/12/result-35th-unikavi-and-unipathak.html