वो राह कोई और सफ़र और कहीं था
ख्वाबों में जो देखा था वो घर और कहीं था
मैं हो न सका शहर का इस शहर में रह के
मैं था तो तेरे शहर में पर और कहीं था
कुछ ऐसे दुआएं थीं मेरे साथ किसी की
साया था कहीं और शज़र और कहीं था
बिस्तर पे सिमट आये थे सहमे हुए बच्चे
माँ-बाप में झगड़ा था असर और कहीं था
इस डर से कलम कर गया कुछ हाथ शहंशाह
गो ताज उसी का था हुनर और कहीं था
था रात मेरे साथ 'रवि' देर तलक चाँद
कमबख्त मगर वक़्त ए सहर और कहीं था
Thanks- रवीन्द्र शर्मा 'रवि' पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
Details- http://kavita.hindyugm.com/2009/12/result-35th-unikavi-and-unipathak.html
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