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Sunday, March 21, 2010

घर और कहीं था

वो राह कोई और सफ़र और कहीं था
ख्वाबों में जो देखा था वो घर और कहीं था

मैं हो न सका शहर का इस शहर में रह के
मैं था तो तेरे शहर में पर और कहीं था

कुछ ऐसे दुआएं थीं मेरे साथ किसी की
साया था कहीं और शज़र और कहीं था

बिस्तर पे सिमट आये थे सहमे हुए बच्चे
माँ-बाप में झगड़ा था असर और कहीं था

इस डर से कलम कर गया कुछ हाथ शहंशाह
गो ताज उसी का था हुनर और कहीं था

था रात मेरे साथ 'रवि' देर तलक चाँद
कमबख्त मगर वक़्त ए सहर और कहीं था

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