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Wednesday, December 18, 2013

अंजन कौन सजाएगा

 

राह घायल से सब कतरा के निकलते रहे,

उन्हें सलामत अस्पताल कौन पहुचाएगा.

 

तुमने गरीबी की रेखा खींच तो ली है,

फुटपाथ वालो  को इसमे कौन लाएगा.

 

यह गूंगों- बहरों की बस्ती हो चुकी है,

घात में बैठे दरिंदो से कौन  बचाएगा.

 

कोख से बच निकली बच्ची खुश तो है,

पर दहेज़ के जालिमो से कौन छुड़ाएगा.

 

ये घोटालो का मुल्क हो चूका है, मेरे यारो,

उजले कपड़ो में सयानो से कौन बचाएगा.

 

 

रह-रह कर नम हो जाती है, सभी की आँखे,

आँखों में अब अपने, 'अंजन' कौन सजाएगा.

 

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