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Wednesday, July 20, 2011

वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे


मंदी के दौर में अगर वाक़ई कुछ ज़्यादा है, तो वो है काम।

कमबख़्त इतना काम है कि इस काम के चक्कर में सारे काम ठप्प पड़े हैं।

 

 

वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया
कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया

यहां अधूरा छोड़ने की नौबत भर नहीं आई है। आसार पूरे हैं। दुआ कीजिए ऐसे आसार और सिर उठाएं। आमीन।

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