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Monday, November 1, 2010

कोई आँसू बहाता है’

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।

बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।

घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो
ये मन भी खूब है, रह रह के, उम्मीदें बँधाता है।

मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।

बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।

किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है।


3 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत बढ़िया उद्गार..

Manish aka Manu Majaal said...

नसीब और मुक्कद्दर का तो पता नहीं मगर,
ऐसी शायरी पढ़ने में, वक़्त खूब कट जाता है.

बहुत अच्छे, लिखते रहिये ....

Manish aka Manu Majaal said...

word verification जो हटा ले आप साहब,
सहूलियत होगी हमारी, आपका क्या जाता है ?

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