Pages

Tuesday, October 26, 2010

मोहब्बत और अदब की शायरा मुमताज नाजां

'हमसफर खो गये...
जिंदगी की सुहानी सी वह रहगुजर
साथ साथ आ रहे थे मेरे वो मगर
आज जाने क्या हुआ मुझे छोड़कर
हाथ मुझसे छुड़ाकर वह गुम हो गये।
मैं भटकती रही जूस्तजू में यहां
और रोती रही मेरी तन्हाइयां
पर चट्टानों से टकराकर लौट आई जब
टूटते दिल के टुकड़ों की जख्मी सदा
जिंदगी की सुहानी सी वह रहगुजर'

ये पक्तियां शायरी के आसमान पर चमकते उस सितारे की हैं, जिसे अदब की दुनिया में मशहूर फनकार मरहूम अजीज नाजां के पत्‍नी के रूप में जाना जाता है। कानपुर की रहने वाली सुशिक्षित एवं कलम की धनी मुमताज नाजां को शायरी के खास अंदाज के लिए शेरो-शायरी की दुनिया में पहचाना जाता है।

मुमताज को बचपन से ही शायरी का शौक रहा है, लेकिन वह अपनी जिंदगी में शायर काबिल अजमेरी से विशेष रूप से प्रभावित रहीं या यूं भी कहा जा सकता है वे काबिल अजमेरी को अपना आदर्श भी मानती हैं। बचपन से ही शायरी की दुनिया में कदम रखने वाली मुमताज का कहना है कि दौर कैसा भी हो, शेर और शायरी के चाहने वालों की कभी कमी नहीं हो सकती।

मुमताज कहती हैं, 'मैं खुद 14 साल की उम्र से इस क्षेत्र से जुड़ी हूं। साथ ही, मेरे पति मरहूम अजीज नाजां खुद अपने वक्त में कव्वाली जगत के एक मशहूर फनकार थे। उनसे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। मैंने उनके लिए कई मौकों पर कलाम लिखे। नात पाक, हम्द शरीफ, गज़ल, नज्म़ सभी मैं बाकायदा लिखती हूं। मेरे लेखन को परिवार की ओर से भी पूरा सहयोग मिला, जिसकी वजह से मैं अच्छा लिखने की कोशिश करती रही हूं।'
 
हुस्नो-इश्क की कंगी चोटी वाली शायरी को ज्यादा अहमियत नहीं देने एवं जदीद लबो-लहजे में अपना दर्द कागज पर उतारने वाली जिंदगी की सच्चाई और हालात का करब, इसके अलावा आदमी के लिए एक पैगाम उनकी शायरी की रूह हुआ करती है, जो उनके कलाम में नजर आता है...

'हसरतों के सिलसिले सोजे निहान तक आ गये।
हम नजर तक चाहते थे तुम तो जान तक आ गये।
रंग आरिज में न था या जुल्फ में खुशबू न थी
आप किसकी जूस्तजू में गुलिस्तान तक आ गये।
उनकी पलकों पर सितारे अपने होठों पर हंसी
किस्सा-ए-गम कहते कहते हम यहां तक आ गये।'
 
मुमताज को बचपन से ही अदबी माहौल मिला। अच्छी तरबियत की वजह से अच्छे शेर कहने वाली मुमताज को शादी के बाद भी वही माहौल मिला, जिसकी उन्हें आरजू थी। यही वजह है कि आज उनके बेटे मुजतबा नाजां संगीतकार होने के साथ-साथ एक अच्छे फनकार भी हैं। वह भी अपनी अपनी लिखी गजलें, नज़्म, नात और हम्द को अपने प्रोग्रामों में पढ़कर महफिल से वाहीवाही लूटते हैं। मुमताज का कहना है कि वह अपने कलामों में उन सभी बातों का ध्यान रखती हैं, जो लोग चाहते हैं। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान वह सरजमीन हैं, जिसमें शेर और शायरी के एक से बढ़कर एक कलमकार पैदा हुए हैं।

वे कहती हैं, 'मैं शेरो-शायरी के अलावा पेंटिंग और गाने-गुनगुनाने में भी खासी दिलचस्पी रखती हूं। मुझे फख्र है कि मैं हिन्दुस्तान जैसे दुनिया के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष देश की निवासी हूं, जहां पर अनेक मजहब होने के बाद भी सब लोग एक सूत्र में बंधकर मुल्क की हिफाजत के लिए लड़ने-मरने को तैयार रहते हैं। इस बात को मैंने अपने देशभक्ति के कलामों में भी शामिल किया है।' जिंदगी की हकीकत को छूने वाले उनके ये अशआर लोग बहुत पसंद करते हैं...
 
'क्या क्या अजीब रंग बदलती है जिंदगी
हर लम्हे नये रूप में ढलती है जिंदगी
चलता है तू तो कदमों की आहट के साथ-साथ
पांव दबा के चुपके से चलती है जिंदगी
सांसों की धूप में जिस्म की लौ आग वफा की
एक शमां की मानिंद पिघलती है जिंदगी।'

No comments:

Post a Comment