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Sunday, July 18, 2010

यह अंदाज़ भी पुराना हुआ

क्या वादा करूँ तुझसे सितारे तोड़ लाऊँगा
मेरी जान ऐसे वादों का रिवाज़ भी पुराना हुआ

लोग अपने महबूब को चाँद बताते थे

मेरी जान आज तो यह अंदाज़ भी पुराना हुआ



यह रात उलझी हुई है तेरी लटों में ओ जानम

आग की रेशमी लपक-सा तेरा उजला चेहरा है

सुर्ख़ तेरे लब हैं जैसे दहकते हुए अंगारे

छलकते पैमाने जैसी आँखों में गुलाबी कोहरा है



तंग पोशाक में उभरे हुए जिस्म की कशिश

तेरा दीवाना आज ख़ुद तेरे हुस्न का शिकार है

गोरे गालों पर काला तिल उफ़ क़ायमत हो

मैं सैद तू सैय्याद यह रिश्ता भी निभाना हुआ



अदाएँ ख़ूब हैं मेरे जल्वागर जाँ-निसार की

वह हर एक रंग में घुलता है निखरता है

जब भी खिलती है उसके चेहरे पर ख़ुशी

वह एक हसीं ख़ाब में भिगोया हुआ लगता है

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