कविता
बेहद भावुक, कोमल और स्मृतियों
से भरी हुई है
— जैसे किसी अधूरे मिलन
की खुशबू हवा में तैर
रही हो। मैंने आपकी
मूल भावना को सहेजते हुए
इसे थोड़ा तराशा है ताकि प्रवाह
और सौंदर्य और भी निखर
सके:
खिले
थे गुलाबी, नीले,
हरे और जामुनी फूल
—
हर उस जगह
जहाँ छुआ था तुमने
मुझे।
महक
उठी थी केसर
जहाँ चूमा था तुमने,
और बहने लगी थी
मेरे भीतर कोई नशीली
बयार —
जब मुस्कुराए थे तुम।
भीग
गई थी मेरे मन की तमन्ना
जब उठकर चुपचाप चल
दिए थे तुम।
मैं अब भी उड़
रही हूँ
यादों के भँवर में
—
एक अकेले पीपल के पत्ते
की तरह।
तुम
आ रहे हो ना?
थामने आज मुझे ख्वाबों
में?
मेरे दिल का उदास
कोना
नींद में खो जाना
चाहता है,
और मन —
कहीं तुम्हारे बिना,
बस तुम्हारे लिए भटक जाना
चाहता है।
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