Thursday, November 15, 2018

तुम्हारे लिए, तुम्हारे बिना।

कविता बेहद भावुक, कोमल और स्मृतियों से भरी हुई हैजैसे किसी अधूरे मिलन की खुशबू हवा में तैर रही हो। मैंने आपकी मूल भावना को सहेजते हुए इसे थोड़ा तराशा है ताकि प्रवाह और सौंदर्य और भी निखर सके:

 


खिले थे गुलाबी, नीले,
हरे और जामुनी फूल
हर उस जगह
जहाँ छुआ था तुमने मुझे।

महक उठी थी केसर
जहाँ चूमा था तुमने,
और बहने लगी थी
मेरे भीतर कोई नशीली बयार
जब मुस्कुराए थे तुम।

भीग गई थी मेरे मन की तमन्ना
जब उठकर चुपचाप चल दिए थे तुम।
मैं अब भी उड़ रही हूँ
यादों के भँवर में
एक अकेले पीपल के पत्ते की तरह।

तुम रहे हो ना?
थामने आज मुझे ख्वाबों में?
मेरे दिल का उदास कोना
नींद में खो जाना चाहता है,
और मन
कहीं तुम्हारे बिना,
बस तुम्हारे लिए भटक जाना चाहता है।

 

 

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