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Tuesday, February 23, 2010

लघुकथा

प्रशिक्षु : दृश्य एक

डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत एक साल के प्रशिक्षु कार्य के लिए मन में उमंग लिए हुए उसने एक वृहदाकार, प्रसिद्ध, निजी अस्पताल में अपनी सेवा देना चाहा। पहले ही दिन उसकी रात्रिकालीन ड्यूटी के दौरान नगर के एक प्रतिष्ठित, सम्पन्न परिवार के मुखिया को आकस्मिकता में अस्पताल लाया गया। मरीज को दिल का भयंकर दौरा पड़ा था और मरीज के अस्पताल पहुँचने से पहले ही यमदूत अपना काम कर गए थे। उसने मरीज की नब्ज देखी जो महसूस नहीं हुई, दिल की धड़कनें सुनीं जो गायब थीं और घोषित कर दिया कि मरीज को अस्पताल में मृत अवस्था में लाया गया।

मरीज के सम्पन्न परिवार जनों को यह खासा नागवार ग़ुजरा और उन्होंने हल्ला मचाया कि मरीज का इलाज उचित प्रकार नहीं हुआ और एक प्रशिक्षु के हाथों ग़लत इलाज से मरीज को बचाया नहीं जा सका।

अगले दिन अस्पताल के मालिक-सह-प्रबंधक ने उस प्रशिक्षु को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

प्रशिक्षु: दृश्य दो

डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत एक साल के प्रशिक्षु कार्य के लिए मन में उमंग लिए हुए उसने एक वृहदाकार, प्रसिद्ध, निजी अस्पताल में अपनी सेवा देना चाहा। पहले ही दिन उसकी रात्रिकालीन ड्यूटी के दौरान नगर के एक प्रतिष्ठित, सम्पन्न परिवार के मुखिया को अस्पताल लाया गया। मरीज को दिल का भयंकर दौरा पड़ा था और मरीज के अस्पताल पहुँचने से पहले ही यमदूत अपना काम कर गए थे। उसने मरीज की नब्ज देखी जो महसूस नहीं हुई, दिल की धड़कनें सुनीं जो नहीं थी। उसका दिमाग तेज़ी से दौड़ा। मरीज का परिवार शहर का सम्पन्नतम परिवारों में से था। उसने तुरंत इमर्जेंसी घोषित की, मरीज के मुँह में ऑक्सीजन मॉस्क लगाया, दो-चार एक्सपर्ट्स को जगाकर बुलाया, महंगे से महंगे इंजेक्शन ठोंके, ईसीजी, ईईजी, स्कैन करवाया, इलेक्ट्रिक शॉक दिलवाया और अंतत: बारह घंटों के अथक परिश्रम के पश्चात् घोषित कर दिया कि भगवान की यही मर्जी थी।

मरीज के सम्पन्न परिवार जन सुकून में थे कि डाक्टर ने हर संभव बढ़िया इलाज किया, अमरीका से आयातित 75 हजार रुपए का जीवन-दायिनी इंजेक्शन भी लगाया, पर क्या करें भगवान की यही मर्जी थी।

अगले दिन अस्पताल के मालिक-सह-प्रबंधक ने मरीज के बिल की मोटी रकम पर प्रसन्नतापूर्वक निगाह डालते हुए उसे शाबासी दी- वेल डन माइ बॉय, यू विड डेफ़िनिटली गो प्लेसेस

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