Thursday, February 6, 2025

✍️ "शब्दों की स्याही"

 काग़ज़ की चुप्पी को, जब कलम छू जाती है,

मन की गहराइयों से, एक लहर उठ जाती है।
हर अक्षर में छिपा होता है, कोई जज़्बात पुराना,
लेखन नहीं बस शब्दों का खेल, ये है आत्मा का फ़साना।

सोचों की परछाइयाँ, जब पंक्तियों में ढलती हैं,
भावनाएँ चुपचाप, कविताओं में पलती हैं।
कभी दर्द की बूंदें गिरती हैं, कभी हँसी की रेखा,
हर पंक्ति में बसी होती है, जीवन की कोई लेखा।

कलम जब चलती है, तो वक़्त भी थम जाता है,
बीते लम्हों का कारवाँ, फिर से लौट आता है।
कभी कल्पना की उड़ान, कभी यथार्थ की ज़ंजीर,
लेखन है वो आईना, जो दिखाए भीतर की तस्वीर।

तो लिखो, चाहे टूटी भाषा में या खामोशियों के साथ,
हर शब्द बनेगा पुल, दिलों को जोड़ने के पथ।
क्योंकि जब मन बोले और काग़ज़ सुने,
तब जन्म लेता है वो जादूजिसे हम "लेखन" कहें।

 

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