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Friday, March 7, 2025

अस्पताल में एक मध्यम वर्गीय परिवार

 

मध्यम वर्गीय परिवारों की ज़िंदगी में अस्पताल का अनुभव एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक पहलू होता है। यह कहानी एक ऐसे ही परिवार की है, जो अपने जीवन के एक कठिन दौर से गुजर रहा है।


परिवार का परिचय

शर्मा परिवार एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार है। परिवार में चार सदस्य हैं - पिता रमेश शर्मा, माँ सीमा शर्मा, बेटा रोहित और बेटी पायल। रमेश एक सरकारी कर्मचारी हैं और सीमा एक गृहिणी। बच्चों की पढ़ाई और घर की ज़िम्मेदारियों के बीच, यह परिवार अपनी सीमित आय में खुशहाल जीवन जी रहा था।

अचानक आई मुसीबत

एक दिन, रमेश को अचानक सीने में तेज दर्द हुआ। परिवार ने तुरंत उन्हें नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल का माहौल हमेशा से ही तनावपूर्ण होता है, और शर्मा परिवार के लिए यह अनुभव नया और चुनौतीपूर्ण था।

अस्पताल का अनुभव

अस्पताल में दाखिल होते ही, सीमा ने अपने पति की देखभाल के लिए हर संभव प्रयास किया। डॉक्टरों ने बताया कि रमेश को हार्ट अटैक हुआ है और उन्हें तुरंत सर्जरी की जरूरत है। यह सुनकर परिवार के सभी सदस्य घबरा गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

आर्थिक चुनौतियाँ

मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए अस्पताल के खर्चे एक बड़ी चुनौती होते हैं। शर्मा परिवार ने अपनी बचत और दोस्तों से उधार लेकर सर्जरी के खर्चे पूरे किए। इस दौरान, उन्होंने सरकारी योजनाओं और बीमा का भी सहारा लिया, जिससे कुछ राहत मिली।

परिवार का साथ

इस कठिन समय में, परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे का सहारा बने रहे। रोहित और पायल ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ घर के कामों में भी मदद की। सीमा ने अपने पति की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस मुश्किल घड़ी में, परिवार का साथ और प्यार ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बना।

सर्जरी के बाद

सर्जरी सफल रही और रमेश धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद, परिवार ने रमेश की देखभाल में कोई कमी नहीं की। इस अनुभव ने उन्हें सिखाया कि जीवन में स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है और परिवार का साथ हर मुश्किल को आसान बना देता है।

निष्कर्ष

मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए अस्पताल का अनुभव हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन परिवार का साथ और प्यार हर मुश्किल को पार कर सकता है। शर्मा परिवार की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमें एकजुट रहना चाहिए और हर परिस्थिति में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

Wednesday, February 19, 2025

बसंत और साहित्य: वसंत ऋतु का साहित्यिक उत्सव

 परिचय

बसंत, जो वसंत ऋतु के नाम से भी जाना जाता है, हमेशा से कवियों, लेखकों और कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। बसंत का आगमन नवीनीकरण, आशा और सुंदरता का प्रतीक है, जो अक्सर साहित्य में परिलक्षित होता है। इस लेख में, हम साहित्य में बसंत के महत्व को समझेंगे और देखेंगे कि विभिन्न लेखकों और कवियों ने इस ऋतु का कैसे वर्णन किया है।



बसंत का प्रतीकात्मक महत्व

बसंत नये आरंभ, पुनर्जन्म और जीवन के खिलने का प्रतीक है। साहित्य में, इसे अक्सर आशा, प्रेम और जीवन की विजय के रूप में उपयोग किया जाता है। खिलते फूल, चहचहाते पक्षी और हल्की ब्रीज़ बसंत का एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते हैं, जिसने अनगिनत साहित्यिक कृतियों को प्रेरित किया है।

कविता में बसंत

कविता साहित्य का सबसे अभिव्यक्तिपूर्ण रूप है, और बसंत कई काव्य रचनाओं में एक आवर्ती विषय रहा है। विलियम वर्ड्सवर्थ, रवींद्रनाथ टैगोर और कालिदास जैसे कवियों ने अपनी कविताओं में बसंत की सुंदरता और आनंद को खूबसूरती से चित्रित किया है। वर्ड्सवर्थ की "लाइन्स रिटन इन अर्ली स्प्रिंग" और टैगोर की "वसंत" इस बात के उत्कृष्ट उदाहरण हैं कि कवियों ने बसंत की सुंदरता का कैसे उत्सव मनाया है।

गद्य में बसंत

गद्य में, बसंत अक्सर प्रेम, नवीनीकरण और परिवर्तन की कहानियों के लिए एक पृष्ठभूमि के रूप में कार्य करता है। क्लासिक उपन्यासों और लघु कथाओं में अक्सर बसंत की छवियों का उपयोग उनके कथानकों को बढ़ाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, थॉमस हार्डी के "फार फ्रॉम मैडिंग क्राउड" में, बसंत का आगमन नए आरंभ और संबंधों के खिलने का संकेत देता है।

सांस्कृतिक महत्व

बसंत केवल एक ऋतु नहीं है, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। भारत में, बसंत पंचमी एक ऐसा त्योहार है जो ज्ञान और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है। यह त्योहार वसंत के आगमन का प्रतीक है और इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें लोग पीले कपड़े पहनते हैं, पतंग उड़ाते हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। ऐसी सांस्कृतिक प्रथाओं ने भी साहित्य में अपनी जगह बनाई है, जिससे बसंत उत्सवों का जीवंत वर्णन समृद्ध हुआ है।

 


 प्रसिद्ध उद्धरण

बसंत पर कई प्रसिद्ध उद्धरण हैं जो इस ऋतु की सुंदरता और महत्व को दर्शाते हैं:

  • "आप सभी फूलों को काट सकते हैं, लेकिन आप बसंत को आने से नहीं रोक सकते।" - पाब्लो नेरूदा

 

  • "बसंत का समय वह होता है जब धूप में गर्मी और छाया में सर्दी होती है।" - चार्ल्स डिकेंस

 

  • "बसंत हर चीज़ में नई जान और नई सुंदरता जोड़ता है।" - जेसिका हैरेलसन

 

  • "बसंत का आगमन बगीचे में होता है, जैसे हर जगह प्रेम की भावना महसूस होती है।" - पर्सी बिश शेली

निष्कर्ष

बसंत, अपने नए आरंभ और प्रकृति की सुंदरता के वादे के साथ, दुनिया भर के लेखकों और कवियों को प्रेरित करता रहता है। साहित्य में बसंत का चित्रण प्रकृति और मानव भावनाओं के बीच के स्थायी संबंध की याद दिलाता है। जैसे ही हम वसंत के आगमन का उत्सव मनाते हैं, आइए उन साहित्यिक खजानों की भी सराहना करें जो इस सुंदर ऋतु का सार पकड़ते हैं।

Thursday, February 13, 2025

Book Review: From Burnout to Balance: Redefining Work-Life Harmony by KVVYS Narayana

 Rating: ★★★★☆ (4/5)

Overview: From Burnout to Balance by KVVYS Narayana is a compelling guide that addresses the critical issue of work-life balance in today's fast-paced world. The book offers practical strategies and insights to help readers achieve harmony between their professional and personal lives, making it a valuable resource for anyone feeling overwhelmed by their daily responsibilities.



Content: Narayana delves into the root causes of burnout, exploring how modern work culture often leads to stress and exhaustion. He emphasizes the importance of recognizing the signs of burnout early and taking proactive steps to prevent it. The book is structured around key themes such as time management, setting boundaries, and prioritizing self-care.

Key Takeaways:

  1. Understanding Burnout: Narayana provides a thorough explanation of what burnout is, its symptoms, and how it can affect both personal and professional life.
  2. Practical Strategies: The book is filled with actionable advice on how to manage time effectively, set realistic goals, and create a supportive work environment.
  3. Self-Care: Emphasizing the importance of self-care, Narayana offers tips on maintaining physical and mental well-being, including exercise, nutrition, and mindfulness practices.
  4. Work-Life Integration: Rather than striving for a perfect balance, the author advocates for integrating work and personal life in a way that allows for flexibility and fulfillment in both areas.

Strengths:

  • Real-Life Examples: The book includes numerous real-life examples and case studies that illustrate the challenges and solutions discussed, making the content relatable and practical.
  • Holistic Approach: Narayana's holistic approach to work-life balance considers various aspects of life, including family, health, and personal growth.
  • Engaging Writing Style: The author's engaging and conversational writing style makes the book an enjoyable read.

Weaknesses:

  • Repetitive at Times: Some readers may find certain sections of the book repetitive, as similar concepts are reiterated throughout.
  • General Advice: While the book offers valuable general advice, some readers might seek more specific strategies tailored to their unique situations.

Conclusion: From Burnout to Balance is a timely and insightful book that provides practical guidance for achieving work-life harmony. KVVYS Narayana's thoughtful approach and actionable advice make it a must-read for anyone looking to improve their well-being and productivity. Whether you're struggling with burnout or simply seeking a better balance, this book offers valuable tools and inspiration to help you thrive.

amazon Link- 

https://www.amazon.in/BURNOUT-BALANCE-Redefining-Work-Harmony/dp/935847193X


नौकरी की वजह से कुंभ 2025 न जाने का दुख

भारत में कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और संस्कृति का महासंगम है। हर बारह साल में आने वाले इस महापर्व में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर आत्मिक शांति की अनुभूति करते हैं। लेकिन सोचिए, जब कुंभ 2025 आपके दरवाजे पर हो और आप नौकरी की ज़ंजीरों में जकड़े रह जाएं—तो दिल पर क्या गुजरती होगी?

जब मन कहे 'हर हर गंगे' और बॉस कहे 'टारगेट पूरे करो'

कुंभ जाने का सपना देखने वालों के लिए ये एक अद्भुत अनुभव होता है। लेकिन जब बॉस कहता है, "डेडलाइन नजदीक है, छुट्टी लेना मुश्किल है," तो सारा उत्साह ठंडा पड़ जाता है। एक तरफ संगम में डुबकी लगाने का अद्भुत अवसर होता है, दूसरी तरफ ऑफिस के एक्सेल शीट और मीटिंग्स की बेड़ियां। ऐसे में नौकरीपेशा इंसान का मन कहता है—"काश! नौकरी के बगैर भी पेट भर जाता!"

घरवाले बुलाते रह गए, हम फंसे रह गए

परिवार वाले और दोस्त जब कुंभ जाने की तैयारियों में जुटे होते हैं, तब हम सिर्फ वॉट्सएप पर उनके मैसेज और फोटो देखकर दिल बहला रहे होते हैं। मां कहती है, "बेटा, इस बार कुंभ चले आओ, पता नहीं अगली बार मौका मिले या नहीं!" लेकिन हम बेबस होकर जवाब देते हैं, "मां, छुट्टी नहीं मिलेगी, अगले कुंभ में देखेंगे!" यह कहते हुए दिल में एक टीस उठती है कि क्या सच में अगला कुंभ देखने का मौका मिलेगा?

सोशल मीडिया की जलन

जब कुंभ मेला शुरू होता है, तो सोशल मीडिया श्रद्धालुओं की तस्वीरों और वीडियोज़ से भर जाता है। लोग संगम में डुबकी लगा रहे होते हैं, साधु-संतों की शोभायात्राएं निकल रही होती हैं, और हम? हम अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर घूरते हुए बस सोचते हैं—"कहीं मैं जिंदगी में सिर्फ काम करने के लिए ही तो नहीं रह गया?"

क्या नौकरी के लिए सबकुछ छोड़ देना सही है?

हर नौकरीपेशा इंसान के दिमाग में यह सवाल जरूर आता है—"क्या वाकई में नौकरी के लिए हम अपने जीवन के सबसे खास अवसर छोड़ दें?" कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक शुद्धि का मौका भी है। अगर हम जीवन के ऐसे पलों से खुद को वंचित रखते रहे, तो क्या पैसा कमाने की दौड़ कभी खत्म होगी?

तो फिर क्या करें?

छुट्टी पहले से प्लान करें: अगर कुंभ जाने का इरादा पक्का है, तो महीनों पहले छुट्टी की अर्जी डाल दें।

विकल्प तलाशें: कुछ दिन Work from Home या एडजस्टमेंट का ऑप्शन तलाशें।

सही प्राथमिकता तय करें: अगर नौकरी इतनी कठोर है कि आपको जरूरी आध्यात्मिक और पारिवारिक अवसरों से वंचित कर रही है, तो शायद यह सोचने का वक्त आ गया है कि क्या यही सही जगह है?

संक्षिप्त यात्रा करें: अगर लंबी छुट्टी नहीं मिल रही, तो वीकेंड या 1-2 दिन की संक्षिप्त यात्रा का प्लान बनाएं।


निष्कर्ष: नौकरी रहेगी, लेकिन कुंभ बार-बार नहीं आएगा

नौकरी की ज़िम्मेदारियां हमेशा रहेंगी, लेकिन कुंभ 2025 के बाद अगला अवसर 2037 में मिलेगा। कौन जानता है तब तक हमारी परिस्थितियां क्या होंगी? इसलिए अगर मन में कुंभ जाने की इच्छा है, तो नौकरी के डर को एक तरफ रखकर इस मौके को हाथ से मत जाने दो। क्योंकि "सैलरी फिर मिल जाएगी, लेकिन गंगा की इस पावन डुबकी का सौभाग्य दोबारा नहीं!"

Wednesday, February 12, 2025

कुंभ मेला और ट्रैफिक जाम: एक बड़ी चुनौती

 भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है। हर 12 वर्षों में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह पर्व करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। कुंभ मेले में गंगा, यमुना, और क्षिप्रा नदियों में स्नान करने के लिए देश-विदेश से भक्तजन आते हैं, जिससे यह आयोजन आस्था और विश्वास का महाकुंभ बन जाता है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति से ट्रैफिक जाम एक प्रमुख समस्या बन जाती है।

ट्रैफिक जाम: कारण और प्रभाव

कुंभ मेले के दौरान भारी संख्या में वाहनों का संचालन होता है, जिससे यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है। प्रमुख स्नान वाले दिनों में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  1. अत्यधिक भीड़: एक ही समय पर लाखों लोग स्नान के लिए निकलते हैं, जिससे सड़कों पर भारी दबाव पड़ता है।

  2. वाहनों की संख्या: निजी वाहनों, बसों और टैक्सियों की अधिकता से सड़कों पर जाम लग जाता है।

  3. संकीर्ण सड़कें: कुछ मार्गों की चौड़ाई सीमित होने के कारण वाहनों की आवाजाही में दिक्कत आती है।

  4. अव्यवस्थित पार्किंग: अनियंत्रित पार्किंग व्यवस्था से यातायात बाधित होता है।

  5. इमरजेंसी सेवाओं में देरी: ट्रैफिक जाम के कारण एंबुलेंस और अन्य आपातकालीन सेवाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

प्रशासन के प्रयास और समाधान

हर कुंभ मेले में प्रशासन ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए कई योजनाएँ बनाता है। इनमें निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए जाते हैं:

  1. वैकल्पिक मार्ग: भारी भीड़ वाले दिनों में वाहनों के लिए वैकल्पिक मार्ग तय किए जाते हैं।

  2. शटल सेवाएँ: मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सरकारी शटल बसें चलाई जाती हैं।

  3. नियमित निगरानी: ड्रोन कैमरों और सीसीटीवी के माध्यम से ट्रैफिक की स्थिति पर नजर रखी जाती है।

  4. विशेष ट्रैफिक पुलिस बल: अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया जाता है ताकि यातायात को नियंत्रित किया जा सके।

  5. प्रचार और जनजागृति: श्रद्धालुओं को ट्रैफिक नियमों की जानकारी देने के लिए रेडियो, टेलीविजन और सोशल मीडिया का उपयोग किया जाता है।

श्रद्धालुओं की भूमिका

प्रशासन के प्रयासों के साथ-साथ श्रद्धालुओं का सहयोग भी आवश्यक है। कुछ सावधानियाँ अपनाकर हम ट्रैफिक जाम से बच सकते हैं:

  • सार्वजनिक परिवहन का अधिक से अधिक उपयोग करें।

  • निर्धारित मार्गों का पालन करें और अनावश्यक भीड़भाड़ से बचें।

  • पार्किंग को सुव्यवस्थित ढंग से करें।

  • प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों का पालन करें।

निष्कर्ष

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का अद्वितीय पर्व है, लेकिन इसके दौरान ट्रैफिक जाम एक गंभीर समस्या बन जाती है। प्रशासन के उचित प्रबंधन और श्रद्धालुओं के सहयोग से इस चुनौती से निपटा जा सकता है। यदि हम सभी मिलकर थोड़ी समझदारी और संयम से काम लें, तो कुंभ मेले का आनंद बिना किसी बाधा के लिया जा सकता है।

कुंभ मेला 2025: आस्था और आयोजन

 भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में कुंभ मेला एक अनूठा पर्व है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, जहां करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। 2025 में आयोजित होने वाला कुंभ मेला एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह धार्मिक आस्था, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक चेतना का संगम होगा। आइए जानते हैं कुंभ मेला 2025 के आयोजन और उससे जुड़ी प्रमुख जानकारियों के बारे में।


कुंभ मेले का महत्व

कुंभ मेला हिंदू धर्म के चार पवित्र स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर बारहवें वर्ष आयोजित किया जाता है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति में धर्म, श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ, तब चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिरीं। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

कुंभ मेला 2025: स्थान और तिथियां

2025 का कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होगा। यह माघ मास के दौरान प्रारंभ होगा और प्रमुख स्नान तिथियों पर लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पवित्र स्नान करेंगे। मुख्य स्नान तिथियां इस प्रकार हो सकती हैं:

  • मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025)

  • पौष पूर्णिमा (29 जनवरी 2025)

  • मौनी अमावस्या (12 फरवरी 2025) – सबसे महत्वपूर्ण शाही स्नान

  • बसंत पंचमी (26 फरवरी 2025)

  • माघ पूर्णिमा (14 मार्च 2025)

  • महाशिवरात्रि (26 मार्च 2025)

विशेष आकर्षण और आयोजन

कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक विशाल सांस्कृतिक आयोजन भी है। 2025 के कुंभ मेले में निम्नलिखित विशेषताएं होंगी:

  • शाही स्नान: प्रमुख आकर्षण जिसमें अखाड़ों के संत, महंत और नागा साधु भव्य शोभायात्रा के साथ संगम में स्नान करते हैं।

  • धार्मिक प्रवचन: विभिन्न संप्रदायों और गुरुओं द्वारा सत्संग और प्रवचन का आयोजन।

  • संस्कृतिक आयोजन: योग शिविर, आध्यात्मिक प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम।

  • सुरक्षा एवं व्यवस्था: आधुनिक तकनीक और डिजिटल सेवाओं का उपयोग, ड्रोन निगरानी और आपातकालीन सेवाओं की विशेष व्यवस्था।

  • स्वच्छता और स्वास्थ्य: सरकार द्वारा विशेष सफाई अभियान, स्वच्छ पेयजल, और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं।

कैसे पहुंचें और ठहरने की व्यवस्था

प्रयागराज देश के प्रमुख शहरों से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। कुंभ मेले के दौरान विशेष ट्रेनों और बसों की व्यवस्था की जाती है। ठहरने के लिए टेंट सिटी, धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध होंगे। सरकार द्वारा ऑनलाइन बुकिंग सुविधाएं भी प्रदान की जाएंगी।

निष्कर्ष

कुंभ मेला 2025 एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करने वाला पर्व होगा, जहां भक्तगण पुण्य लाभ अर्जित करने के लिए संगम में स्नान करेंगे और संतों के आशीर्वाद से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करेंगे। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गौरवशाली छवि को दुनिया के सामने प्रस्तुत करेगा।

यदि आप कुंभ मेले का हिस्सा बनने की योजना बना रहे हैं, तो अभी से अपनी यात्रा की तैयारी करें और इस दिव्य मेले का अनुभव करें।

कुंभ मेला: एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव

 

कुंभ मेला, जो विश्व के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है, हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपराओं में गहराई से निहित है। 2025 का महाकुंभ मेला, जो प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में आयोजित होने जा रहा है, एक विशाल आयोजन होगा, जो दुनिया भर से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगा।




ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

कुंभ मेला की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, मंथन के दौरान अमृत (अमरता का अमृत) की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। ये स्थान तब से कुंभ मेला के लिए निर्धारित स्थल बन गए हैं, जो बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के विशिष्ट ज्योतिषीय संरेखण के आधार पर बारी-बारी से आयोजित होते हैं.

2025 का महाकुंभ मेला

2025 का महाकुंभ मेला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 12-कुंभ मेला चक्र की समाप्ति का प्रतीक है, जो हर 144 साल में एक बार होता है। यह आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक त्रिवेणी संगम, गंगा, यमुना और मिथकीय सरस्वती नदियों के संगम पर आयोजित होगा. इस आयोजन में अनुमानित 400 से 450 मिलियन आगंतुकों के शामिल होने की उम्मीद है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण जनसमूह बन जाएगा.

प्रमुख अनुष्ठान और उत्सव

कुंभ मेला अपने शाही स्नान (राज स्नान) के लिए प्रसिद्ध है, जहां लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं, यह मानते हुए कि यह आत्मा को शुद्ध करता है और मोक्ष (मुक्ति) की ओर ले जाता है। इस त्योहार में कई महत्वपूर्ण स्नान के दिन शामिल होते हैं, जिन्हें अमृत स्नान कहा जाता है, जो पापों को धोने के लिए अत्यधिक शुभ माने जाते हैं.

2025 कुंभ मेला के प्रमुख स्नान तिथियों में शामिल हैं:

  • पौष पूर्णिमा: 13 जनवरी 2025
  • मकर संक्रांति: 14 जनवरी 2025
  • मौनी अमावस्या: 29 जनवरी 2025
  • वसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025
  • माघ पूर्णिमा: 12 फरवरी 2025

संगठनात्मक प्रयास

इतने बड़े आयोजन को आयोजित करना विस्तृत योजना और समन्वय की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश सरकार, विभिन्न एजेंसियों के साथ मिलकर, कुंभ मेला के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक उपाय करती है। इसमें अस्थायी बुनियादी ढांचे की स्थापना, स्वच्छता और स्वास्थ्य की देखभाल, भीड़ नियंत्रण और चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना शामिल है.

2025 के कुंभ मेला का बजट ₹73.82 बिलियन (US$850 मिलियन) अनुमानित है, जो आयोजन के पैमाने को दर्शाता है. अधिकारी पर्यावरणीय स्थिरता पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं, पवित्र नदियों की रक्षा करने और आयोजन के पारिस्थितिक प्रभाव को कम करने के उपाय लागू करते हैं.

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव

धार्मिक महत्व से परे, कुंभ मेला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिबिंब है। यह आयोजन परंपराओं का एक जीवंत मिश्रण प्रस्तुत करता है, जिसमें आध्यात्मिक प्रवचन, योग सत्र और भक्ति संगीत प्रदर्शन शामिल हैं। यह आस्था, संस्कृति और समुदाय का एक शक्तिशाली संगम है, जो दुनिया भर से आध्यात्मिक साधकों, विद्वानों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है.

निष्कर्ष

कुंभ मेला 2025 आस्था की शक्ति, लाखों भक्तों की भक्ति और इस तरह के भव्य आयोजन को संभव बनाने वाले अद्वितीय संगठनात्मक प्रयासों का प्रमाण है। यह आध्यात्मिकता, भक्ति और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनूठा मिश्रण है, जो सामूहिक भक्ति और आध्यात्मिक नवीनीकरण का एक गहन अनुभव प्रदान करता है।


Tuesday, February 11, 2025

साहित्य और वर्तमान चुनाव:

 साहित्य और चुनाव दोनों ही समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं, जो किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। साहित्य समाज के सोचने, समझने और महसूस करने के तरीके को प्रभावित करता है, जबकि चुनाव समाज के लोकतांत्रिक तंत्र को परिभाषित करते हैं। जब हम वर्तमान चुनावों की बात करते हैं, तो यह साफ है कि चुनावों का प्रभाव केवल राजनीति पर ही नहीं पड़ता, बल्कि यह समाज के सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण को भी प्रभावित करता है।

साहित्य का चुनावों पर प्रभाव

  1. सामाजिक जागरूकता: साहित्य समाज के विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता फैलाता है। लेखक और कवि चुनावों के दौरान समाज में व्याप्त समस्याओं, असमानताओं और नेताओं के कर्तव्यों को उजागर करते हैं। उनकी रचनाएँ समाज को सोचने पर मजबूर करती हैं और चुनावों में लोगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती हैं। इस संदर्भ में साहित्य समाज के परिवर्तनों को समर्पित है और चुनावों को एक सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।

  2. राजनीतिक आलोचना और व्यंग्य: साहित्य के माध्यम से लेखक राजनीतिक सत्ता, नेताओं, और उनके कार्यों की आलोचना करते हैं। चुनावों के दौरान, राजनीतिक मुद्दों पर कविता, कहानी और निबंधों के रूप में तीव्र और प्रभावशाली आलोचना प्रस्तुत की जाती है। साहित्यकार चुनावी प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार, वादाखिलाफी, और समाज के कमजोर वर्गों के साथ भेदभाव की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। व्यंग्यात्मक साहित्य चुनावी नेताओं के कृत्यों पर प्रश्नचिह्न उठाने का एक शक्तिशाली उपकरण बनता है।

  3. नैतिकता और जनचेतना: साहित्य चुनावों के दौरान लोगों में नैतिकता और जनचेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अच्छा साहित्य चुनावी प्रक्रिया के महत्व को उजागर करता है और लोगों को सही उम्मीदवार का चयन करने के लिए प्रेरित करता है। साहित्य समाज के नैतिक पहलुओं को उभारता है और चुनावी प्रक्रिया को एक आदर्श और सत्यनिष्ठा से जोड़ने का प्रयास करता है।

चुनावों का साहित्य पर प्रभाव

  1. राजनीतिक साहित्य का विकास: चुनावों के समय राजनीतिक साहित्य का विकास तेजी से होता है। चुनावी मुद्दों पर लेख, किताबें, कविताएँ और अन्य साहित्यिक रचनाएँ लिखी जाती हैं। चुनावों के दौरान राजनीतिक विचारों, दलों और नेताओं के बारे में साहित्यकार अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। यह साहित्य न केवल समाज के राजनीतिक दृष्टिकोण को दिखाता है, बल्कि यह चुनावी प्रक्रिया की समझ को भी बढ़ाता है।

  2. लोकतंत्र का सशक्तीकरण: चुनाव लोकतंत्र के मौलिक स्तंभ हैं, और साहित्य लोकतंत्र की शक्ति को दिखाने का एक माध्यम बन सकता है। चुनावों के दौरान साहित्यकार लोकतंत्र के आदर्शों की बात करते हैं, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता और जनभागीदारी। इसके माध्यम से, साहित्य चुनावों की प्रक्रिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ जोड़ने का प्रयास करता है, ताकि समाज में जागरूकता और सहभागिता बढ़ सके।

  3. साहित्य और मीडिया का सामंजस्य: आजकल मीडिया और साहित्य दोनों चुनावों के दौरान जनता को प्रभावित करने के प्रमुख साधन बन चुके हैं। साहित्य के लेखक और पत्रकार चुनावों से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं, और एक मंच पर उनका साझा प्रयास जनता के बीच चुनावों के महत्व को स्थापित करता है। साहित्य और मीडिया मिलकर चुनावी शिक्षा और राजनीतिक संवाद को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

निष्कर्ष

साहित्य और चुनावों का आपसी संबंध समाज और राजनीति की दिशा को प्रभावित करता है। जहाँ साहित्य चुनावों के दौरान समाज को जागरूक करता है, वहीं चुनाव साहित्य के माध्यम से लोगों की सोच और दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं। साहित्य का चुनावी राजनीति में प्रभाव बड़ा होता है, क्योंकि यह लोगों को न केवल अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि समाज के समक्ष आने वाली समस्याओं को उजागर करने का भी कार्य करता है। चुनावी प्रक्रिया को लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और समाज के सभी वर्गों के लिए समावेशी बनाने में साहित्य एक सशक्त उपकरण के रूप में काम करता है।

प्रेमचंद्र के उपन्यास और वर्तमान समय

मुंशी प्रेमचंद्र भारतीय साहित्य के महान लेखक हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। उनका साहित्यिक योगदान न केवल उस समय के समाज और मनोवृत्तियों की गहरी छानबीन करता है, बल्कि आज के समय में भी उनकी रचनाएं उतनी ही प्रासंगिक और प्रभावशाली हैं। प्रेमचंद्र के उपन्यासों में उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से उजागर किया, चाहे वह सामाजिक असमानता हो, ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ हों, या फिर मानवता की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष।



प्रेमचंद्र का लेखन अपनी काव्यात्मकता और सशक्त संवादों के कारण विशेष पहचान बनाता है। उनके उपन्यासों में एक ओर जहाँ समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज़ें सुनाई देती हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने प्रेम, मानवीय संबंधों, और नैतिकता जैसे मुद्दों पर भी गहरे विचार प्रस्तुत किए। आइए, हम उनके कुछ प्रमुख उपन्यासों और उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा करें।


प्रेमचंद्र के प्रमुख उपन्यास

  1. गोदान
    प्रेमचंद्र का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास "गोदान" भारतीय समाज की एक संपूर्ण तस्वीर पेश करता है। इसमें मुख्य पात्र होरी महतो के माध्यम से उन्होंने किसानों की कठिनाईयों और उनके संघर्ष को बखूबी चित्रित किया। गोदान केवल एक कृषि उपन्यास नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की जटिलताओं का विश्लेषण करता है। आज के समय में, जब कृषि संकट और किसानों की समस्याएँ चर्चा का विषय बन चुकी हैं, "गोदान" की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। यह उपन्यास हमें यह समझाता है कि आर्थिक विषमताएँ, शोषण और सामाजिक न्याय की कमी आज भी समाज की बड़ी समस्याएँ हैं।

  2. निर्मला
    "निर्मला" एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें प्रेमचंद्र ने विधवा पुनर्विवाह, बाल विवाह और महिला शिक्षा जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। निर्मला की त्रासदी ने समाज में महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाए और उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाई। वर्तमान समय में, महिला सशक्तिकरण की दिशा में भले ही कई कदम उठाए गए हों, लेकिन महिला अधिकारों के हनन और लैंगिक असमानता की समस्या अभी भी समाज में व्याप्त है। इस दृष्टि से "निर्मला" आज भी प्रासंगिक है।

  3. रंगभूमि
    प्रेमचंद्र का "रंगभूमि" उपन्यास भारतीय राजनीति और समाज के संघर्ष को बारीकी से पेश करता है। इसमें उन्होंने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे जातिवाद, असमानता और उपनिवेशी शासन के खिलाफ संघर्ष को दिखाया। यह उपन्यास आज के सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य में भी उतना ही प्रभावशाली है, जहाँ हम आज भी जातिवाद, असमानता और राजनीतिक संघर्ष देख रहे हैं।

प्रेमचंद्र के उपन्यासों की प्रासंगिकता

प्रेमचंद्र के उपन्यास न केवल उनके समय की समाजिक चुनौतियों को दर्शाते थे, बल्कि उन्होंने उन समस्याओं के समाधान के लिए अपनी रचनाओं में तर्क, सच्चाई और नैतिकता का पक्ष रखा। उनका यह दृष्टिकोण आज के समाज में भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आज का समय भले ही बदल चुका हो, लेकिन उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे जैसे गरीबी, शोषण, जातिवाद, और महिलाओं का उत्पीड़न आज भी समाज में मौजूद हैं।

आज के समाज में प्रेमचंद्र के उपन्यासों का प्रभाव:

  1. समाज में असमानता और शोषण:
    आज भी हम समाज में असमानता, विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक शोषण के मुद्दों को देख रहे हैं। किसान और मजदूर वर्ग की समस्याएँ, जो प्रेमचंद्र ने अपने उपन्यासों में प्रमुखता से उठाई थीं, आज भी वर्तमान हैं। "गोदान" और "रंगभूमि" की तरह, आज भी सामाजिक न्याय की आवश्यकता बनी हुई है।

  2. महिला अधिकार:
    प्रेमचंद्र ने हमेशा महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला और उनके अधिकारों की वकालत की। "निर्मला" और "रंगभूमि" जैसे उपन्यासों में महिलाओं के संघर्ष और उनके अधिकारों का मुद्दा उठाया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है। आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण का प्रयास जारी है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा, भेदभाव और असमानता अभी भी चुनौतीपूर्ण हैं।

  3. मानवता और नैतिकता:
    प्रेमचंद्र के उपन्यासों में मानवता और नैतिकता का संदेश गहरे स्तर पर छिपा होता है। चाहे वह होरी का संघर्ष हो या निर्मला का शोषण, प्रेमचंद्र ने हमेशा समाज की कमजोर कड़ी की तरफ ध्यान आकर्षित किया। आज भी ऐसे मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि हम एक समान और नैतिक समाज की ओर बढ़ सकें।

निष्कर्ष

प्रेमचंद्र के उपन्यास न केवल उनके समय की सटीक तस्वीर पेश करते हैं, बल्कि आज के समय में भी उनकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। उनकी रचनाएँ आज भी समाज को जागरूक करने, जागृति फैलाने और समस्याओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बन सकती हैं। उनके उपन्यासों में गहरे सामाजिक संदेश हैं, जो हमारे समाज को एक बेहतर दिशा में आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं।


वर्तमान साहित्य और युवा: एक नई दिशा की ओर

वर्तमान समय में भारतीय साहित्य अपनी गहरी जड़ों को पहचानते हुए नई दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है। जब हम साहित्य की बात करते हैं, तो यह केवल किताबों या कविताओं तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज के हर पहलू को अपने भीतर समाहित करता है। युवा पीढ़ी आज साहित्य के विभिन्न रूपों को अपनाने के साथ-साथ अपने विचारों, संवेदनाओं और संघर्षों को भी व्यक्त कर रही है।

1. युवा और साहित्य: एक अनूठा संबंध

आज का युवा साहित्य को केवल किताबों तक सीमित नहीं समझता, बल्कि उसे डिजिटल मीडिया, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में भी खोजता है। यह युवा पीढ़ी साहित्य को एक माध्यम मानती है, जिसके द्वारा वे अपनी भावनाओं और विचारों को दुनिया तक पहुंचा सकते हैं।

साहित्य की यह नई दिशा, जहाँ शब्दों का मतलब बदल रहा है, उसी से जुड़ी एक नई बहस भी सामने आती है। क्या यह साहित्य, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, उसी गुणवत्ता का है जो हम क्लासिकल साहित्य में पाते हैं? सवाल यह है कि क्या युवा साहित्य के पारंपरिक रूपों को भूलकर केवल ट्रेंडिंग कंटेंट को अपनाएंगे, या फिर वे उस गहरी संस्कृति और विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे जो साहित्य का हिस्सा रही है।

2. समाज की बदलती तस्वीर और साहित्य का बदलाव

समाज के भीतर हो रहे परिवर्तनों को साहित्य के माध्यम से व्यक्त करना बहुत महत्वपूर्ण है। आज का युवा उन बदलावों को महसूस कर रहा है, जिनसे वह गुजर रहा है। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, सामाजिक असमानताएं, और धर्मनिरपेक्षता जैसे मुद्दे अब साहित्य में प्रमुख स्थान रखते हैं।

इस संदर्भ में डिजिटल साहित्य का भी उतना ही महत्व है। अब युवा अपनी भावनाओं को ब्लॉग, व्लॉग, सोशल मीडिया पोस्ट और ट्वीट्स के माध्यम से प्रकट कर रहा है। यह साहित्य का एक नया रूप है, जो पारंपरिक किताबों से बाहर निकलकर डिजिटल रूप में अपना स्थान बना रहा है। युवा इसे अपनी आवाज़ और पहचान के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि वे अपने विचारों और संघर्षों को समाज तक पहुंचा सकें।

3. साहित्य में युवा की आवाज

जब हम साहित्य की बात करते हैं, तो यह सिर्फ एक प्रकार की कला या लेखन नहीं है, बल्कि यह समाज की सच्चाइयों को सामने लाने का एक माध्यम है। युवा साहित्यकारों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है, और अपने लेखन के जरिए वे उन मुद्दों को उजागर कर रहे हैं, जिनसे वे रोज़ाना जूझते हैं।

हाल के वर्षों में कविता, कहानी, और निबंध जैसे पारंपरिक साहित्यिक रूपों में भी बदलाव आए हैं। युवा लेखकों ने अपनी शैली में नयापन और ताजगी दी है। उदाहरण के तौर पर, युवा कवि अपनी कविताओं में अब सीधे तौर पर व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों को शामिल करते हैं, जैसे प्रेम, असहमति, राजनीति, और स्वीकृति। यही नहीं, वे अपनी लेखनी के जरिए सवाल उठाते हैं और अपने पाठकों से संवाद स्थापित करते हैं।

4. नई टेक्नोलॉजी और साहित्य

आजकल ऑडियोबुक्स, पॉडकास्ट और इ-रीडर्स जैसे डिजिटल माध्यम साहित्य को अधिक पहुंच योग्य बना रहे हैं। युवा इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने पसंदीदा लेखकों के काम को अधिक आसानी से एक्सेस कर रहे हैं। यह नया साहित्यिक अनुभव उन्हें अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को बेहतर तरीके से समझने और व्यक्त करने का अवसर दे रहा है।

इस तरह के डिजिटल साहित्य का प्रभाव न केवल लेखकों पर, बल्कि पाठकों पर भी पड़ा है। वे अब साहित्य को एक नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं, जहां वे किसी भी समय और कहीं भी पढ़ सकते हैं, और अपनी राय सीधे लेखक या कंटेंट क्रिएटर तक पहुंचा सकते हैं।

5. युवा साहित्यकारों की चुनौतियाँ

हालांकि वर्तमान साहित्य में युवा पीढ़ी का योगदान महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। सबसे बड़ी चुनौती है साहित्यिक स्वतंत्रता। युवा लेखक अब भी पारंपरिक साहित्यिक मानकों और आलोचकों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए एक मंच की आवश्यकता होती है, जो उन्हें या तो साहित्यिक पत्रिकाओं से मिलता है या फिर डिजिटल प्लेटफॉर्म से।

साथ ही, आज का युवा लेखक अपनी लेखनी के साथ सामाजिक जिम्मेदारी को भी महसूस करता है। उसे यह समझना होता है कि उसकी आवाज़ में समाज की सच्चाई और संवेदनशीलता का एक हिस्सा होना चाहिए, ताकि वह अपने लेखन के जरिए किसी बदलाव की नींव रख सके।

निष्कर्ष

वर्तमान साहित्य और युवा के बीच एक गहरा संबंध है जो समय के साथ और भी मजबूत होता जा रहा है। युवा साहित्यकार अपनी अनूठी सोच और संवेदनाओं के माध्यम से साहित्य को एक नया आयाम दे रहे हैं। वे न केवल अपने व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त कर रहे हैं, बल्कि समाज की जटिलताओं, असमानताओं और संघर्षों को भी उजागर कर रहे हैं।

साहित्य के पारंपरिक रूपों को डिजिटल माध्यमों से जोड़कर युवा पीढ़ी ने यह साबित कर दिया है कि साहित्य केवल पुरानी किताबों तक सीमित नहीं है। यह एक जीवित और गतिशील प्रक्रिया है, जो समय के साथ अपने रूप बदलती है और समाज की हर धड़कन के साथ बदलती है।

युवा पीढ़ी का साहित्य में यह योगदान आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण होगा, और यह न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।

Thursday, January 23, 2025

 Best life tips





Tip 1.

Thank God for everything you have

Write down 10 things you have in your life that give you happiness. Focus on the good things! Being gratitude is a biggest virtue.

Tip 2.

Practice physical activity

Experts say exercising helps and improve mood. 30 minutes of exercise is the best antidote against sadness and stress.

Tip 3.

Breakfast

Some people miss breakfast for lack of time or not to get fat. Studies show that breakfast gives you energy, helps you think and perform your activities successfully.

Tip 4.

Assertive

Ask what you want and say what you think. Being assertive helps improve your self-esteem. Being left and remaining silent creates sadness and hopelessness.

Tip 5.

Spend your money on experiences

A study found that 75% of people felt happier when they invested their money in travel, courses and classes,While only the rest said they felt happier when buying things.

Tip 6.

Face your challenges

Studies show that the more you postpone something the more anxiety and tension you generate. Write short weekly lists of tasks and complete them.Remember take the difficult tasks priority basis.

Tip 7.

Put everywhere nice memories, phrases and photos of your loved ones

Fill your fridge, your computer, your desk, your room, YOUR LIFE of beautiful memories.

Tip 8.

Always greet and be nice to other people

That's is basic etiquette..More than 100 inquiries state that just smiling changes the mood.

Tip 9.

Wear comfortable shoes

If your feet hurt you, you become moody, says Dr. Keinth Wapner, President of the American Orthopedics Association.

Tip 10.

Take care of your posture

Walk straight with your shoulders slightly backwards and the front view helps to maintain a good mood.

Tip 11.

Listen to music (Praise God)

It is proven that listening to music awakens you to sing,this will make your life happy.

Tip 12.

What you eat has an impact on your mood

Do not skip meals, eat lightly every 3 to 4 hours and keep glucose levels stable.Avoid excess salt and sugar.Eat everything! Healthy- Vary your food.

Tip 13.

Take care of yourself and feel attractive

70% of people say they feel happier when they think they look good.

Tip 14.

Go hungry

Fast for a day in a week. Do work without eating,push yourself,it will improve your metabolism,endurance power and more gutsy body.

Tip 15.

Fervently believe in God

With him nothing is impossible! Happiness is like a remote control, we lose it every time, we go crazy looking for it and many times without knowing it,we are sitting on top of it ...


By quora.