Friday, July 16, 2021

डॉ. सुनील जोगी की बहुचर्चित कविता मुश्किल है अपना मेल प्रिये

 

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,


तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सप्रेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटेर लंबरेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,



तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं almuniam का थाल प्रिये,
तुम चिक्केन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरण-चौकरी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,



मैं शनी-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो,
मैं तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूँ,
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की,
तुम हो वरदान विधता का, मैं ग़लती हूँ भगवांता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,



तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ,
तुम ए के-सैंतालीस जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ,
तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा ख़ाली हूँ,
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,



मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो,
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोतल हो,
तुम चित्र-हार का मधुर गीत, मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्व-सुंदरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोने का मोबाइल हो, मैं टेलीफ़ोन वाला हूँ चोँगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंघा,
दस मंज़िल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,


तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-जयललिता जैसी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फॉलो-ओन की पारी हूँ,
तुम getz, matiz, corolla हो मैं Leyland की लॉरी हूँ,
मुझको रेफ़री ही रेहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं सोच रहा की रहे हैं कब से, श्रोता मुझको झेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये...

Saturday, March 13, 2021

निष्ठा से वो कर्म किये जा।

 कर्म तेरे अधिकार में केवल, कर्म किये जा तू कर्म किये जा,

फल की इच्छा त्याग के अर्जुन पालन अपना धर्म किये जा।

किस स्थिति में क्या धर्म है तेरा, ज्ञात तू इसका मर्म किये जा,

तेरे लिए जो धर्म है निश्चित निष्ठा से वो कर्म किये जा।

हे पार्थ! तुम कर्म कर सकते हो, कर्म करने का संकल्प कर सकते हो, परन्तु इसका फल पाना तुम्हारे हाथों में नहीं है।
अर्जुन पूछते हैं- हे मधुसूदन! मैं जिस काम का संकल्प करूँगा वो काम तो मैं करूँगा ही। जब भोजन करने का निश्चय करके बैठूंगा तो निवाला उठाकर मुँह में रखूँगा ही। तभी तो उसे खाऊँगा?
कृष्ण कहते हैं- यदि वो खाने का निवाला तुम्हारे प्रारब्ध में नहीं है, तो उसे तुम मुँह तक तो ले जाओगे, परन्तु उस ग्रास का एक दाना भी अपने मुँह में नहीं रख सकोगे। हे अर्जुन! केवल कर्म का संकल्प ही प्राणी के अधिकार में है। उसका फल प्राणी के अधिकार में नहीं है।
अर्जुन पूछता है- वो कैसे?
कृष्ण कहते हैं- पार्थ! तनिक उस दृश्य की कल्पना करो की नगर धनवान के सामने बड़े स्वादिष्ट भोजन की थाली परोसी गई है। थाली सोने की है। गरमा-गर्म व्यंजन भरे हुए हैं। जिन्हें देखकर वो बहुत प्रसन्न हो रहा है। वो बड़ी प्रसन्नता से पहला निवाला उठाता है, लेकिन जैसे ही वह खाने लगता है उसकी सेविका का पैर फिसल जाता है और वह उस भोजन पर गिर जाती है और राजा को चोट लग जाती है। तब कृष्ण कहते हैं- अर्जुन देख लिया, कि प्रारब्ध में ना हो तो मुँह तक पहुंचकर भी निवाला तक छिन जाता है। परन्तु हे अर्जुन! इस उदाहरण का ये अर्थ भी नहीं है कि तुम सब कुछ प्रारब्ध पर छोड़कर स्वयं अकर्मण्य हो जाओ। याद रखो मैंने कहा है
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥