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Friday, June 19, 2020

जिंदगी के तजुर्बे

मेरे तजुर्बे, मेरे उम्र से, ज्यादा हैं बहुत
वक्त के थपेड़े, वक्त से पहले खाए हैं बहुत

वक्त के साथ बदल जाती है, अक्सर दुनिया
वक्त के साथ रिश्ते, बदलते देखे हैं बहुत
हम तो किसी की आँखों में, मदहोश रहे
नशे में मदहोश, घर बर्बाद देखे हैं बहुत

उगते सूरज को सलाम करते है, सब लोग
ढलते सूरज को पीठ दिखाते देखे हैं, बहुत
बिस्तरों में सोते होंगे कुत्ते आपके यहाँ,
फुटपात  में सोते आदमी देखे हैं बहुत

शायद मशीनों का पानी उसे रास ना आये
स्टेशनों की बाटले ढोते बच्चे, देखे हैं बहुत
कहने से किसी के कैसे  बेच दू,  गॉव का घर
किसी याद के साये अब भी देखे हैं बहुत

चाचा चुपके से कान में कुछ कहने लगे
बंदूक लेकर जाना गॉव, ड़कैत देखे हैं बहुत

बढ़ने लगे है,शहरों में जमीनों के धनवान
अंजन थोडा ठहर, दिल के गरीब देखे हैं बहुत




Wednesday, March 18, 2020

मशहूर था

कुछ तुम भी मगरूर थे, कुछ मैं भी मगरूर था
अगरचे ना तुम मजबूर थे, ना मैं मजबूर था

एक जिद के झोंके ने दो कश्तियाँ, मोड़ दीं दो तरफ
वरना दूरियों का ये ग़म किस कमबख्त को मंजूर था

खतामंदी का अहसास दफ़न किये हम अपने सीने में
कहाँ तक बहलायें दिल को, सब वक़्त का कुसूर था

ये तो नहीं कि मेरी नज़रों को धोका हो गया
तुम्हारी जानिब से भी हल्का-सा कोई इशारा ज़रूर था

दिल ही मेरा नादाँ निकला, यकीं कर बैठा
यूँ जमाने में शोख नज़रों का मुकर जाना मशहूर था

एक तुझसे ही क्यों हो शिकायत मुझे ज़माने में
हर किसी के जब लब पर यहाँ जी-हुज़ूर था



प्रकाश पंडित