Friday, February 22, 2019

जो भी आधा और अधूरा शब्द मिला मुझको राहों में..

जो भी आधा और अधूरा शब्द मिला मुझको राहों में..." — एक गहन, आत्मविश्लेषी और भावनात्मक रचना है, जो जीवन की अधूरी अनुभूतियों, स्मृतियों और संघर्षों को शब्दों में पिरोती है। हालांकि यह कविता किसी प्रसिद्ध कवि की प्रकाशित रचना के रूप में सीधे उपलब्ध नहीं है, इसकी शैली और भावों से यह स्पष्ट होता है कि यह एक आधुनिक हिंदी कविता है, जो अधूरेपन की सुंदरता और संघर्षों में सौंदर्य को दर्शाती है।

 मुख्य भाव और विषय:

  • अधूरे शब्दों का सौंदर्य:
    कवि ने राहों में मिले अधूरे शब्दों को छंदों में पिरोकर उन्हें गुनगुनायायह रचना प्रक्रिया की कोमलता को दर्शाता है।
  • क्षणिक अनुभूतियाँ:
    जैसे पाटल पर टपके भोर के आँसू या पूनम की रात की लहरेंये सब क्षणिक हैं, पर कवि के मन में स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।
  • शिकायत नहीं, स्वीकार है:
    जीवन की बिखरी हुई घड़ियों को कवि ने आंजुरी में भरकर सहेजा हैयह एक गहरी सकारात्मकता और स्वीकार्यता का भाव है।
  • पतझड़ और परछाइयाँ:
    पतझड़ के आक्रोश को पी जाना और खोई हुई आवाज़ों को गीतों में पिरो देनायह रचना की पुनर्रचना है, जो पीड़ा को सौंदर्य में बदल देती है।
  • निराशा से दूरी:
    कवि कहता है कि उसने कभी निराशा का स्वागत नहीं किया, बल्कि थके हुए संकल्पों को सँवारा और बुझी निष्ठा को फिर से दीपित किया।
  • डगर ही सहचर बनी:
    चाहे लक्ष्य स्पष्ट हो या नहीं, कवि ने राह को ही अपना साथी बना लियायह जीवन के प्रति एक गहरी दार्शनिक दृष्टि है।

 

जो भी आधा और अधूरा शब्द मिला मुझको राहों में

मैने उसको पिरो छन्द में कभी कभी गुनगुना लिया है

 

जितनी देर टिके पाटल

टपके हुए भोर के आंसू

उतनी देर टिकी बस आकर

है मुस्कान अधर पर मेरे

जितनी देर रात पूनम की

करती लहरों से अठखेली

उतनी देर रहा करते हैं

आकर पथ में घिरे अंधेरे

 

किन्तु शिकायत नहीं, प्रहर की मुट्ठी में से जो भी बिखर

आंजुरि भर कर उसे समेटा और कंठ से लगा लिया है

 

पतझड़ का आक्रोश पी गया

जिन्हें पत्तियो के वे सब सुर

परछाईं बन कर आते हैं

मेरे होठों पर रुक जात

खो रह गईं वही घाटी म्रं

लौट पाईं जो आवाज़ेंं

पिरो उन्हीं में अक्षर अक्षर

मेरे गीतों को गा जाते

 

सन्नाटे की प्रतिध्वनियों में लिपटी हुई भावनाओं को

गूंज रहे निस्तब्ध मौन में अक्सर मैने सजा लिया है

यद्यपि रही सफ़लताओं

मेरी सदा हाथ भर दूरी

मैने कभी निराशाओं का

स्वागत किया नहीं है द्वारे

थके थके संकल्प्प संवारे

बुझी हुई निष्ठा दीपित कर

नित्य बिखेरे अपने आंगन

मैने निश्चय के उजियारे

 

सन्मुख बिछी हुई राहों का लक्ष्य कोई हो अथवा हो

मैने बिखरी हुई डगर को पग का सहचर बना लिया है

 

Friday, February 8, 2019

शिरडी के सांई बाबा


साईं बाबा (२८ सितंबर, १८३५१५ अक्तूबर, १९१८), एक भारतीय संत एवं गुरू हैं जिनका जीवन शिरडी में बीता। उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्यों को किया तथा जनता में भक्ति एवं धर्म की धारा बहाई। इनके अनुयायी भारत के सभी प्रांतों में हैं एवं इनकी मृत्यु के लगभग ९० वर्षों के बाद आज भी इनके चमत्कारों को सुना जाता है।

 सांई बाबा की शिक्षा

१. !! सबका मालिक एक!!

साई बाबा की सबसे बडी शिक्षा और सन्देश है कि जाति, धर्म्, समुदाय, आदि व्यर्थ की बातो मे ना पड कर आपसी मतभेद भुलाकर आपस मे प्रेम और सदभावाना से रहना चाहिए क्योकि सबका मलिक एक है ।

२ !!श्रद्धा और सबूरी!!

साई बाबा ने अपने जीवन मे यह सन्देश दिया है कि हमेशा श्रद्धा और विश्वास के साथ जीवन यापन करते हुए सबूरी (सब्र)के साथ जीवन व्यतीत करे !

३.!!मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है!!

साई बाबा ने कभी भी किसी को धर्म की अवहेलना नही की अपितु सभी धर्मों का सम्मान करने की सलाह देते हुए हमेशा मनवता को ही सबसे बडा धर्म और कर्म बताते हुए जीवन जीने की अमूल्य शिक्षा प्रदान की है!

४.!!जातिगत भेद भुला कर प्रेम पूर्वक रहना!!

साई बाबा ने कहा है की जाति,समाज,भेद-भाव,आदि सब बाते ईश्वर ने नही बल्कि इंसानों द्वारा बनाया गया है! इसलिए ईश्वर की नजर मे न तो कोई उच्च है और न ही कोई निम्न इसलिए जो काम ईश्वर को भी पसद नही है वह मनुष्य को तो करना ही नही चाहिए अर्थात जात-पात,धर्म,समाज आदि मिथ्या बातों में न पड़ कर आपस मे प्रेमपूर्वक रहकर जीवन व्यतीत करना चाहिए!

५.!!गरीबो और लाचार की मदद करना सबसे बड़ी पूजा है!!

साई बाबा ने हमेसा ही सभी जनमानस से यही बार-बार कहा है कि सभी के साथ ही समानता का व्यवहार करना चाहिए! गरीबों और लाचारों की यथासम्भव मदद करना चाहिए और यही सबसे बडी पूजा है! क्योकि जो गरीबों, लाचारों की मदद करता है ईश्वर उसकी मदद करता है!

६.!!माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों, बडो का सम्मान करना चाहिए!!

साई बाबा हमेशा ही समझाते थे कि अपने से बडो का आदर सम्मान करना चाहिए! गुरुजनो बुजर्गो को सम्मान करना जिसस उनका आर्शीवाद प्राप्त होता है जिससे हमारे जिवन की मुश्किलों मे सहायता मिलती है! !! सबका मालिक एक !!!

 साई बाबा का महान चरित्र

  • साई बाबा के बारे में कहना तो किसी के भी बस की बात नही है!पर साई कृपा से ही इस विषय पर लिखा जा सकता है!साई बाबा सर्व समर्थ हो कर भी हमेशा अपना जीवन सीमित साधनो द्वारा ही व्यतीत किया और सभी जनमानस को सादगी एवं सरल जीवन व्यतीत करना सिखाया क्योकि सरलता पूर्वक ही इस संसार मे प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है!साई हमेशा ही अडम्बरो से मुक्त रह कर यह बताते थे कि अडम्बरो मे ही अहकार की भवना निहीत होती है!इसलिए अगर मुक्त होना चाहते हो सबसे पहले स्वम को अडम्बरो से छुटकारा पाना होगा!
  • साई बाबा जो हमेशा ही यही कोशिश करते रहे की जनमानस क ह्रदयपटल मे से समाज मे व्याप्त सामाजिक कुरितीयो का नाश हो और सभी प्रेम पुर्वक रह कर जिवन का आनद ले क्योकि हमारे भारतवर्ष् मे कितने ही धर्म जाति के लोग व उन्के समुदाय बसे हुए है!और सभी अपने धर्म को श्रेष्ट बताते हुए आपस मे मतभेद रखते है!और जिसका परिणाम सिवाय समाजिक आरजकता और दन्गे के रुप मे सामने आते है!इसीलिए बाबा ने हमेशा ही यह कह कर की "सबका मालिक एक" गुरुमत्र दिया है!
  • साई का जीवन आज के आधुनिक युग मे हमे कई प्रकार से प्ररेणा देता है!
  • श्री साई बाबा जइसे सन्त से हि आज् कल्युग मै मानव जीवन क उधार सम्भव है **