Thursday, June 29, 2017

गुलमोहर की छाँव मेँ ! लावण्या शाह

वह बैठी रहती थी, हर साँझ,
तकती बाट प्रियतम की , चुपचाप
गुलमोहर की छाँव मेँ !
जेठ की तपती धूप सिमट जाती थी,
उसके मेँहदी वाले पैँरोँ पर
बिछुए के नीले नँग से, खेला करती थी
पल पल फिर, झिडक देती ...
झाँझर की जोडी को..
अपनी नर्म अँगुलीयोँ से.....
कुछ बरस पहले यही पेड हरा भरा था,
नया नया था !
ना जाने कौन कर गया
उस पर, इतनी चित्रकारी ?
कौन दे गया लाल रँग ?
खिल उठे हजारोँ गुलमोहर
पेड मुस्कुराने लगा
और एक गीत , गुनगुनाने लगा
नाच उठे मोरोँ के जोड
उठाये नीली ग्रीवा थिरक रहे माटी पर
शान पँखोँ पे फैलाये !
शहेरोँ की बस्ती मेँ "गुलमोहर एन्क्लेव " ..
पथ के दोनो ओर घने लदे हुए ,
कई सारे पेड -
नीली युनिफोर्म मेँ सजे, स्कूल बस के इँतजार मेँ
शिस्त बध्ध, बस्ता लादे,
मौन खडे........बालक !
..........सभ्य तो हैँ !!
पर, गुलमोहर के सौँदर्य से
अनभिज्ञ से हैँ ...!!



गुलमोहर की छाँव में / लावण्या शाह


Wednesday, June 21, 2017

मेरा प्रियतम

बैठो न अभी पास मेरे
थोड़ी दूर ही रहो खड़े
मेरा प्रियतम आया है
दूर देश से बावन साल बाद
कैसे कह दूँ कि अभी धीर धरो
शशि - सा सुंदर रूप है उसका
निर्मल शीतल है उसकी छाया
झंझा पथ पर चलता है वह्
स्वर्ग का है सम्राट कहलाता
मेरी अन्तर्भूमि को उर्वर करने वाला
वही तो है मेरे प्राणों का रखवाला
जब इन्तजार था आने का
तब तो प्रिय आए नहीं
अवांछित, उपेक्षित रहती थी खड़ी
आज बिना बुलाए आए हैं वो
कैसे कह दूँ कि हुजूर अभी नहीं
दीप शिखा सी जलती थी चेतन
इस मिट्टी के तन दीपक से ऊपर उठकर
लहराता था तुषार अग्नि बनकर
भेजा करती थी उसको प्रीति,मौन निमंत्रण लिखकर
आज कैसे कहूँ कि वह प्रेमी-मन अब नहीं रहा
जिससे मिलने के लिए ललकता रहता था मन
वह आकर्षण अब दिल में नहीं रहा

Thanks- Tara Singh jI 


Thursday, June 15, 2017

एक बार कह लेते प्रियतम

एक बार कह लेते प्रियतम

घना कुहासा
धुँआ-धुँआ सा
छँट जाता
घुप्प आसमां
बँधा-बँधा सा
कट जाता
कोरों पे ठहरी दो बूँदे
बह जाती चुपके से अंतिम

एक बार कह लेते प्रियतम

कही नहीं पर
कहीं जो बातें
मूक आभास
दो प्राणों के
गुँथे हवा में
कुछ निश्वास
अधरों पर कुछ काँपते से स्वर
भी पा जाते मुक्ति चिरतम

एक बार कह लेते प्रियतम

मौन स्वीकृति
बंद पलकों में
शर्माती
नये स्वप्न के
तानेबाने
सुलझाती
आशाओं के इंद्रधनुष से
रंग-बिरंग हो सज जाता तम

एक बार कह लेते प्रियतम


Thanks to :
मानसी