जन्म नाम: इन्किलाब श्रीवास्तव
जन्म तिथि: 11 अक्टूबर, 1942
जन्म स्थान: इलाहबाद, उत्तर प्रदेश
कद: 6'2"
परिवार: पत्नी: जया बच्चन, बेटा: अभिषेक बच्चन ,बहु: ऐश्वर्या राय बच्चन , बेटी:श्वेता नंदा
पहली फिल्म: सात हिन्दुस्तानी
पहली सफल फिल्म: जंजीर
उपनाम: बिग बी,एंग्री यंग मेन,शहेंशाह
धारावाहिक:कौन बनेगा करोड़पति
फिल्म कंपनी:ए.बी.सी.एल
बिग बी के नाम से जाने जाने वाले अमिताभ बॉलीवुड के शहेंशाह भी कहे जाते है| 40 साल बाद भी आज बॉलीवुड में उनके कद के सामने कोई नहीं है और 67 की उम्र में भी आज वे बॉलीवुड के सबसे व्यस्त अभिनेताओं में गिने जाते है| शुरू में जिस बाहरी आवाज़ के कारण निर्देशकों ने अमिताभ को अपनी फिल्मों से लेने को मना कर दिया था, वही आवाज़ आगे चलकर उनकी विशिष्टता बनी| 40 साल के पेशे में उन्हें दर्शकों ने अनेको नाम दिए: बिग बी , शहेंशाह, एंग्री यंग मेन आदि| अमिताभ ने न सिर्फ बड़े परदे पर खुद को साबित किया पर छोटे परदे पर भी नए आयाम स्थापित किये| धारावाहिक 'कौन बनेगा करोडपति' से उन्होंने अपनी जिंदगी की नयी पारी की शुरुआत की थी और एक के बाद एक नया उच्चमान हासिल करते गए| एक अभिनेता के आलावा, अभिताभ एक गायक, निर्माता और सांसद की भूमिका भी निभा चुके है|
पेशा(करियर)
अमिताभ ने अपनी फ़िल्मी करियर की शुरुआत सं 1969 में 'सात हिन्दुस्तानी' से की| कहा जाता है कि उन्हें इस फिल्म में काम अपने दोस्त राजीव गाँधी की बदौलत मिला जिन्होंने अमिताभ को इंदिरा गाँधी का सिफारशी ख़त दिलवाया(सूत्र:आईऍमडीबी)| इससे पहले उन्हें अपनी भारी आवाज़ और सांवले रंग की वजह से नजर अंदाज़ कर दिया गया था| उनकी भारी आवाज़ कथा विवरण के लिय इस्तेमाल होती थी और वे रेडियो पर भी आते थे| हालांकि फिल्म कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पायी पर अमिताभ को राष्ट्रीय पुरस्कार (नवांगतुक अभिनेता) से सम्मानित किया गया|
1971 में उन्होंने उस वक़्त के सितारे राजेश खन्ना के साथ 'आनंद' में जोड़ी बनायीं| हालांकि फिल्म में राजेश खन्ना के होने कि वजह से अमिताभ का किरदार दबा हुआ रहा पर उन्हें फिल्मफेयर सह कलाकार का पुरस्कार जरुर मिला| उन्होंने आगे 'परवाना', 'रेशमा और शेरा' और 'बॉम्बे टू गोवा' जैसी फिल्में कि जो औसतन रही| 17 फिल्में करने के बाद भी अमिताभ एक बड़ी सफलता के इंतज़ार में थे जब 1973 में प्रकाश महरा ने उन्हें 'जंजीर' में न्योता दिया| अमिताभ को यह किरदार प्राण के कहने पर मिला और उन्होंने इस अवसर को दोनों हाथ से उठा लिया| न सिर्फ ये उनके पेशे कि पहली बड़ी सफल फिल्म थी, इस फिल्म से उन्हें 'एंग्री यंग मेन' का ख़िताब भी मिला| उसी साल उनकी जया भादुरी से शादी हुई और एक महीने बाद उनकी अगली फिल्म 'अभिमान' दर्शकों के सामने आई| उनकी अगली फिल्म दोस्ती पर हृषिकेश की 'नमक हराम' आई|
1975 में उन्होंने कई तरह की फिल्मों में काम किया जिनमे 'चुपके चुपके' बेहद लोकप्रिय रही| 1975 में उन्होंने यश चोपरा की फिल्म 'दीवार' में काम किया और ये अब तक की उनकी सबसे सफल फिल्म रही| इस फिल्म के संवाद, जैसे "मेरा बाप चोर है", "मेरे पास माँ है", आज भी दर्शकों के जहन में बैठे है| उनकी अगली फिल्म आई "शोले" जिसने बॉलीवुड के सारे उच्चमान तोड़ दिए और अमिताभ को बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं में ला खड़ा किया| बच्चन ने फिल्म जगत के कुछ शीर्ष के कलाकारों जैसे धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, जया बच्चन और अमजद खान के साथ जयदेव की भूमिका अदा की थी। 1999 में बीबीसी ने 'शोले' को इस शताब्दी की सबसे बेहतरीन फिल्म बताया और दीवार की तरह इसे इंडियाटाइम्ज़ मूवियों में बालीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फिल्मफेयर पुरूस्कार था। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बच्चन ने अब तक अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था और 1976 से 1984 तक उन्हें अनेक सर्वश्रेष्ठ कलाकार वाले फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और अन्य पुरस्कार एवं ख्याति मिली। उनका सुनहरा दौर आगे बढा और उन्होंने 'कभी कभी' और 'अमर अकबर एंथनी' जैसे सफल फिल्में दी| 'अमर अकबर एंथनी' के लिय उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी मिला| 1978 में उन्होंने उस साल की 4 सबसे बड़ी फिल्मों में काम किया - 'कसमे वादे', 'डॉन', 'त्रिशूल' और ' मुक़द्दर का सिकंदर' | डॉन में उन्होंने एक कुख्यात सरगना का किरदार निभाया और उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार मिला| फिल्म 'त्रिशूल' और 'मुक़द्दर का सिकंदर' से उन्होंने माँ-बेटे के प्रेम पर बनने वाली थीम को आगे बढाया जो दर्शकों को बेहद पसंद आई और इन फिल्मों के संवादों ने इतिहास में अपनी जगह बना ली| उनकी अगली फिल्में, 'नटवरलाल', 'काला पत्थर', 'दोस्ताना', 'सिलसिला' उनकी सफल फिल्मों की सूची को बड़ा करती गयी|
1982 - कुली चोट
1982 में कुली फिल्म में बच्चन ने अपने सह कलाकार पुनीत इस्सर के साथ एक लड़ाई की शूटिंग के दौरान अपनी आंतों को लगभग घायल कर लिया था। बच्चन ने इस फिल्म में स्टंट अपनी मर्जी से करने की छूट ले ली थी जिसके एक सीन में इन्हें मेज पर गिरना था और उसके बाद जमीन पर गिरना था। हालांकि जैसे ही ये मेज की ओर कूदे तब मेज का कोना इनके पेट से टकराया जिससे इनके आंतों को चोट पहुंची और इनके शरीर से काफी खून बह निकला था। इन्हें जहाज से फोरन स्पलेनक्टोमी के उपचार हेतु अस्पताल ले जाया गया और वहां ये कई महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहे और कई बार मौत के मुंह में जाते जाते बचे। यह अफ़वाह भी फैल गई थी, कि वे एक दुर्घटना में मर गए हैं और संपूर्ण देश में इनके चाहने वालों की भारी भीड इनकी रक्षा के लिए दुआएं करने में जुट गयी थी| इस दुर्घटना की खबर दूर दूर तक फैल गई और यूके के अखबारों की सुर्खियों में छपने लगी जिसके बारे में कभी किसने सुना भी नहीं होगा। बहुत से भारतीयों ने मंदिरों में पूजा अर्चनाएं की और इन्हें बचाने के लिए अपने अंग अर्पण किए और बाद में जहां इनका उपचार किया जा रहा था उस अस्पताल के बाहर इनके चाहने वालों की मीलों लंबी कतारें दिखाई देती थी. इन्होने ठीक होने में कई महीने ले लिए और उस साल के अंत में एक लंबे अरसे के बाद पुन: काम करना आरंभ किया। यह फिल्म 1983 में रिलीज हुई और आंशिक तौर पर बच्चन की दुर्घटना के असीम प्रचार के कारण बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।
निर्देशक मनमोहन देसाई ने कुली फिल्म में बच्चन की दुर्घटना के बाद फ़िल्म के कहानी का अंत बदल दिया था। इस फिल्म में बच्चन के चरित्र को वास्तव में मृत्यु प्राप्त होनी थी लेकिन बाद में कहानी में परिवर्तन करने के बाद उसे अंत में जीवित दिखाया गया। देसाई ने इनके बारे में कहा था कि ऐसे आदमी के लिए यह कहना बिल्कुल अनुपयुक्त होगा कि जो असली जीवन में मौत से लड़कर जीता हो उसे परदे पर मौत अपना ग्रास बना ले। इस रिलीज फिल्म में पहले सीन के अंत को जटिल मोड़ पर रोक दिया गया था और उसके नीचे एक केप्शन प्रकट होने लगा जिसमें अभिनेता के घायल होने की बात लिखी गई थी और इसमें दुर्घटना के प्रचार को सुनिश्चित किया गया था।
बाद में ये मियासथीनिया ग्रेविस में उलझ गए जो या कुली में दुर्घटना के चलते या तो भारीमात्रा में दवाई लेने से हुआ या इन्हें जो बाहर से अतिरिक्त रक्त दिया गया था इसके कारण हुआ। उनकी बीमारी ने उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कमजोर महसूस करने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने फिल्मों में काम करने से सदा के लिए छुट्टी लेने और राजनीति में शामिल होने का निर्णय किया। यही वह समय था जब उनके मन में फिल्म कैरियर के संबंध में निराशावादी विचारधारा का जन्म हुआ और प्रत्येक शुक्रवार को रिलीज होने वाली नई फिल्म के प्रत्युत्तर के बारे में चिंतित रहते थे। प्रत्येक रिलीज से पहले वह नकारात्मक रवैये में जवाब देते थे कि यह फिल्म तो फ्लाप होगी।
राजनीति
1984 में अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र राजीव गांधी के सहयोग में राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद लोक सभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच.एन. बहुगुणा को इन्होंने आम चुनाव के इतिहास में (68.2 %) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था। हालांकि इनका राजनैतिक कैरियर कुछ अवधि के लिए ही था, जिसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनैतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया। इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा। इस मामले में बच्चन को दोषी नहीं पाया गया।
उनके पुराने मित्र अमरसिंह ने इनकी कंपनी एबीसीएल के दिवालिया हो जाने के कारण आर्थिक संकट के समय इनकी मदद कीं। इसके बाद बच्चन ने अमरसिंह की राजनैतिक पाटी समाजवादी पार्टी को सहयोग देना शुरू कर दिया। जया बच्चन समाजवादी पार्टी से जुडी और राज्यसभा की सदस्या बन गई। बच्चन ने समाजवादी पार्टी के लिए अपना समर्थन देना जारी रखा जिसमें राजनैतिक अभियान अर्थात प्रचार प्रसार करना शामिल था। इनकी इन गतिविधियों ने एक बार फिर मुसीबत में डाल दिया और इन्हें झूठे दावों के सिलसिलों में कि वे एक किसान हैं के संबंध में कानूनी कागजात जमा करने के लिए अदालत जाना पड़ा I
बहुत कम लोग ऐसे हैं जो ये जानते हैं कि स्वयंभू प्रैस ने अमिताभ बच्चन पर प्रतिबंध लगा दिया था। स्टारडस्टऔर कुछ अन्य पत्रिकाओं ने मिलकर एक संघ बनाया, जिसमें अमिताभ के शीर्ष पर रहते समय 15 वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। इन्होंने अपने प्रकाशनों में अमिताभ के बारे में कुछ भी न छापने का निर्णय लिया। 1989 के अंत तक बच्चन ने उनके सैटों पर प्रेस के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन, वे किसी विशेष पत्रिका के खिलाफ़ नहीं थे। ऐसा कहा गया है कि बच्चन ने कुछ पत्रिकाओं को प्रतिबंधित कर रखा था क्योंकि उनके बारे में इनमें जो कुछ प्रकाशित होता रहता था उसे वे पसंद नहीं करते थे और इसी के चलते एक बार उन्हें इसका अनुपालन करने के लिए अपने विशेषाधिकार का भी प्रयोग करना पड़ा।
सेवानिवृत्ति
1988 में बच्चन फिल्मों में तीन साल की छोटी सी राजनैतिक अवधि के बाद वापस लौट आए और शहंशाह में शीर्षक भूमिका की जो बच्चन की वापसी के चलते बॉक्स आफिस पर सफल रही। इस वापसी वाली फिल्म के बाद इनकी स्टार पावर क्षीण होती चली गई क्योंकि इनकी आने वाली सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल होती रहीं। 1991 की सफल फिल्म हम से ऐसा लगा कि यह वर्तमान प्रवृति को बदल देगी किंतु इनकी बॉक्स आफिस पर लगातार असफलता के चलते सफलता का यह क्रम कुछ पल का ही था। उल्लेखनीय है कि सफलता की कमी के बावजूद यह वह समय था जब अमिताभ बच्चन ने 1991 की फिल्म अग्निपथ में माफिया सरगना की यादगार भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, जीते। ऐसा लगता था कि अब ये वर्ष इनके अंतिम वर्ष होंगे क्योंकि अब इन्हें केवल कुछ समय के लिए ही परदे पर देखा जा सकेगा| 1992 में खुदागवाह के रिलीज होने के बाद बच्चन ने अगले पांच वर्षों के लिए फिल्मों से तौबा कर ली|
निर्माता अमिताभ और अभिनय में वापसी
अस्थायी सेवानिवृत्ति की अवधि के दौरान बच्चन निर्माता बने और अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की। अमिताभ ने 1996 में वर्ष 2000 तक 10 बिलियन रूपए (लगभग २५० मिलियन अमरीकी डॉलर) वाली मनोरंजन की एक प्रमुख कंपनी बनने का सपना देखा। एबीसीएल की रणनीति में भारत के मनोरंजन उद्योग के सभी वर्गों के लिए उत्पाद एवं सेवाएं प्रचलित करना था। इसके ऑपरेशन में मुख्य धारा की व्यावसायिक फ़िल्म उत्पादन और वितरण, ऑडियो और वीडियो कैसेट डिस्क , उत्पादन और विपणन के टेलीविजन सॉफ्टवेयर , हस्ती और इवेन्ट प्रबंधन शामिल था। 1996 में कंपनी के आरंभ होने के तुरंत बाद कंपनी द्वारा उत्पादित पहली फिल्मतेरे मेरे सपने थी जो बॉक्स ऑफिस पर विफल रही | एबीसीएल ने कुछ फिल्में बनाई लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी।
1997 में, एबीसीएल द्वारा निर्मित मृत्युदाता, फिल्म से बच्चन ने अपने अभिनय में वापसी का प्रयास किया। यद्यपि मृत्युदाता ने बच्चन की पूर्व एक्शन हीरो वाली छवि को वापस लाने की कोशिश की लेकिन फिल्म औंधे मूह गिरी और एबीसीएल को भरी नुक्सान हुआ | एबीसीएल 1997 में बंगलौर में आयोजित 1996 की मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता का प्रमुख प्रायोजक था और इसके खराब प्रबंधन के कारण इसे करोड़ों रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था। इस घटनाक्रम और एबीसीएल के चारों ओर कानूनी लड़ाइयों और इस कार्यक्रम के विभिन्न गठबंधनों के परिणामस्वरूप यह तथ्य प्रकट हुआ कि एबीसीएल ने अपने अधिकांश उच्च स्तरीय प्रबंधकों को जरूरत से ज्यादा भुगतान किया है जिसके कारण वर्ष 1997 में वह वित्तीय और क्रियाशील दोनों तरीके से ध्वस्त हो गई| कंपनी प्रशासन के हाथों में चली गई और बाद में इसे भारतीय उद्योग मंडल द्वारा असफल करार दे दिया गया। अप्रेल 1999 में मुबंई उच्च न्यायालय ने बच्चन को अपने मुंबई वाले बंग्ला प्रतीक्षा और दो फ्लेटों को बेचने पर तब तक रोक लगा दी जब तक कैनरा बैंक की राशि के लौटाए जाने वाले मुकदमे का फैसला न हो जाए। बच्चन ने हालांकि दलील दी कि उन्होंने अपना बंग्ला सहारा इंडिया फाइनेंस के पास अपनी कंपनी के लिए कोष बढाने के लिए गिरवी रख दिया है।
बाद में बच्चन ने अपने अभिनय के कैरियर को संवारने का प्रयास किया जिसमें उसे बड़े मियाँ छोटे मियाँ से औसत सफलता मिली और सूर्यावंशम, से सकारात्मक समीक्षा प्राप्त हुई लेकिन ये मान लिया गया कि बच्चन की महिमा के दिन अब समाप्त हुए चूंकि उनके बाकी सभी फिल्में जैसे 'लाल बादशाह' और 'हिंदुस्तान की कसम' बॉक्स ऑफिस पर विफल रही हैं।
दूरदर्शन
वर्ष 2000 में , बच्चन ने अंग्रेजी धारावाहिक, कौन बनेगा करोड़पति ? को भारत में अनुकूलन हेतु कदम बढाया। शीर्षक कौन बनेगा करोड़पति जैसा कि इसने अधिकांशत: अन्य देशों में अपना कार्य किया था जहां इसे अपनाया गया था वहां इस कार्यक्रम को तत्काल और गहरी सफलता मिली जिसमें बच्चन के करिश्मे भी छोटे रूप में योगदान देते थे। यह माना जाता है कि बच्चन ने इस कार्यक्रम के संचालन के लिए साप्ताहिक प्रकरण के लिए अत्यधिक 25 लाख रुपए लिए थे, जिसके कारण बच्चन और उनके परिवार को नैतिक और आर्थिक दोनों रूप से बल मिला। इससे पहले एबीसीएल के बुरी तरह असफल हो जाने से अमिताभ को गहरे झटके लगे थे। नवंबर 2000 में केनरा बैंक ने भी इनके खिलाफ अपने मुकदमे को वापस ले लिया। बच्चन ने केबीसी का आयोजन नवंबर 2005 तक किया और इसकी सफलता ने फिल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए।
शहेंशाह की वापसी
अमिताभ ने यश चोपरा की फिल्म 'मोहब्बतें' के साथ धमाकेदार वापसी की| इस फिल्म में वे बॉलीवुड के बादशाह शाह रुख खान के साथ नजर आये| फिल्म दर्शकों को बेहद पसंद आई और उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का पुरस्कार मिला| 'मोहब्बतें की सफलता को देखते हुए अमिताभ अपने उम्र के किरदार निभाने लगे जिससे वे फिर से दर्शकों के चहेते बनने लगे| इन्ही किरदारों में उनकी फिल्में 'कभी खुशी कभी गम' और 'बागबान' दर्शकों को बेहद पसंद आई| संजय लीला भंसाली की फिल्म 'ब्लैक' में उन्हें एक अलग ही तरह का किरदार करने का मौका मिला जो उन्होंने आज तक पहले नहीं किया था| फिल्म कहानी थी एक बूढ़े अध्यापक और उसके अंधी-बहरी शिष्या रानी मुख़र्जी की| इस फिल्म के लिय उन्हें न सिर्फ फिल्मफेयर पुरस्कार मिला, उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया| अपनी फिल्मों की सफलता को देखते हुए, अमिताभ ने ढेरो विज्ञापनों में आना शुरू किया| 2006 में वे बेटे अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय के साथ गाना 'कजरा रे'(फिल्म: बंटी और बबली) में दिखाई दिए जो बेहद लोकप्रिय हुआ|
बच्चन की सफल फिल्मों का दौर जारी रहा और उन्होंने 'सरकार', 'कभी अलविदा ना कहना' और 'सरकार राज'' जैसी सफल फिल्में दी| 2009 में उन्होंने एक और चुनातिपूर्ण किरदार निभाया फिल्म 'पा' में| इस फिल्म में उन्होंने प्रोजेरिया से पीड़ित 13 साल के बच्चे का किरदार निभाया| फिल्म में वे अभिषेक बच्चन के बेटे बने और उन्हें फिम्फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया|
निजी जिंदगी
अमिताभ बच्चन प्रसिद्ध कवी हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के बेटे है| उनका एक भाई अजिताभ बच्चन है| उनका जन्म इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश में हुआ| उन्होंने शेरवूड कॉलेज, नैनीताल और किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविध्यालय से पढाई पूरी की और कलकत्ता की 'शो एंड वाल्लेस' में काम किया| आगे चलकर वे बम्बई आ गए फिल्मों में किस्मत आजमाने पर अपनी भारी आवाज़ के चलते निर्देशकों ने उन्हें अपनी फिल्मों में लेने से इनकार कर दिया| हालांकि उनकी भारी आवाज़ को पृष्ठभूमि में इस्तेमाल किया गया और उन्होंने रेडियो में भी काम किया|
दिलचस्प बातें
- भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकार|
- अमिताभ और राजीव गाँधी गहरे दोस्त थे और इंदिरा गाँधी की मदद से उन्हें उनकी पहली फिल्म मिली|
- राजीव गाँधी के कहने पर अमिताभ राजनीति में कूदे और इलाहाबाद से सांसद बने|
- फिल्म 'कुली' में काम करते वक़्त उन्हें आँतों में गहरी चोट लगी और वे मौत के मूंह में जाते जाते बाल बाल बचे| उन्हें लिय हजारो करोडो दर्शकों ने मन्नतें मांगी|
- रेखा और अमिताभ की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आई|
- उन्होंने कई सारी फिल्मों में गानें भी गाए है|
- उनका फिल्मों में मनपसंद नाम विजय रहा और 20 से ज्यादा फिल्मों में ये नाम इस्तेमाल किया|
- अभिनेत्री 'निरूपा रॉय' ने अधिकतम फिल्मों में उनकी माँ का किरदार निभाया|
- 58 साल की उम्र में उन्होंने 30 फीट की ईमारत से छलांग लगायी|
- 1996 में उन्होंने संगीत एल्बम 'एबी बेबी' रिलीज़ किया|
- 1984 में उन्हें पदमा श्री से नवाजा गया|
- वे ही एक अभिनेता है जिन्होंने लगातार 15 साल तक हर साल कम से कम एक सफल फिल्म दी|
पुरस्कार
1969 | राष्ट्रीय पुरस्कार: सात हिन्दुस्तानी |
1971 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-कलाकार पुरस्कार: आनंद |
1973 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह-कलाकार पुरस्कार: नमक हराम |
1975 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कलाकार पुरस्कार:दीवार |
1977 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कलाकार पुरस्कार: अमर अकबर एंथनी |
1978 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कलाकार पुरस्कार: डॉन |
1990 | राष्ट्रीय पुरस्कार: अग्निपथ |
1991 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कलाकार पुरस्कार:हम |
2000 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार पुरस्कार:मोहब्बतें |
2001 | फिल्मफेयर समीक्षक पुरस्कार: अक्स |
2005 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ कलाकार पुरस्कार:ब्लैक फिल्मफेयर समीक्षक पुरस्कार:ब्लैक राष्ट्रीय पुरस्कार: ब्लैक |
2009 | फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार: पा |
अमिताभ बच्चन फिल्में
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# रण (2010) | # पा (2009) |
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# ज़बान (1972) | # एक नज़र (1972) |
# बॉम्बे टू गोवा (1972) | # पिया का घर (1971) |
# रेशमा और शेरा (1971) | |
# बंसी बिरजू (1972) | # संजोग (1971) |
# परवाना (1971) | # प्यार की कहानी (1971) |
# गुड्डी (1971) | # आनंद (1971) |
# भुवन शॉमे (1969) | # सात हिन्दुस्तानी (1969) |