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Friday, September 3, 2010

सफ़र लगती है

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है
लम्हे-लम्हे में बसी है तिरी यादों की महक
आज की रात तो खुशबू का सफ़र लगती है

क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर

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मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊंगा

शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए
सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊंगा

1 comment:

Udan Tashtari said...

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है

-आप तो जाँ निसार अख़्तर तक जा पहुँचे जनाब!!

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