अंजन.... कुछ दिल से
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
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Tuesday, May 18, 2010
पल दो पल की शायरी...
जो बीत गई वो बात गई
सूरज निकला और रात गई
अब जीने की ख्वाहिश क्या करना
मरने की तमन्ना कौन करे
जब प्यास बुझाने की खातिर
प्यासा पनघट को जाता है
ऐसे में प्यासा क्यों मरना
और... पानी-पानी कौन करे!...
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