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Saturday, April 6, 2024

📖 पुस्तक समीक्षा: "कागज़ की नाव" – सौरभ त्रिपाठी

 🌊 विषय: बचपन, स्मृतियाँ और समय

📚 परिचय

"कागज़ की नाव" एक ऐसी पुस्तक है जो पाठक को बचपन की गलियोंबरसात की बूंदों, और बीते हुए लम्हों की ओर ले जाती है। सौरभ त्रिपाठी की यह कृति केवल एक स्मृति यात्रा है, बल्कि एक भावनात्मक दस्तावेज़ भी हैजिसमें हर पाठक अपने अतीत की परछाइयाँ देख सकता है।

 

🧒 कहानी की आत्मा

यह पुस्तक एक छोटे शहर के लड़के की आँखों से देखी गई दुनिया को दर्शाती हैजहाँ कागज़ की नावें सिर्फ खेल नहीं, बल्कि उम्मीदों और सपनों की प्रतीक होती हैं। लेखक ने बचपन की मासूमियत, परिवार की गर्माहट, और समय के साथ बदलते रिश्तों को बेहद संवेदनशीलता से उकेरा है।

 

✍️ लेखन शैली

सौरभ त्रिपाठी की लेखनी कविता जैसी लयबद्धसरल, और भावनात्मक रूप से गूंजती हुई है। हर अध्याय एक अलग दृश्य की तरह सामने आता हैकभी स्कूल की घंटी, कभी माँ की पुकार, तो कभी पहली बारिश की खुशबू।

 

💬 प्रेरणादायक अंश

"वक़्त की नदी में बहती कागज़ की नावें, कभी डूबती हैं, कभी किनारे लगती हैंलेकिन हर बार कुछ नया सिखा जाती हैं।"

 

🌟 मुख्य विशेषताएँ

  • बचपन की यादों का जीवंत चित्रण
  • भावनाओं की गहराई और सरल भाषा
  • हर उम्र के पाठकों के लिए उपयुक्त
  • आत्म-चिंतन और स्मृति की सुंदर प्रस्तुति

 

 रेटिंग: 4.7/5

"कागज़ की नाव" उन पुस्तकों में से है जो पढ़ने के बाद भी मन में तैरती रहती हैंजैसे कोई पुरानी धुन, कोई भूली-बिसरी खुशबू। यह पुस्तक केवल पढ़ी जाती है, बल्कि महसूस की जाती है।