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"वीर
तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!" एक प्रेरणादायक और
देशभक्ति से ओत-प्रोत
कविता है, जिसे द्वारिका
प्रसाद माहेश्वरी ने रचा है ✨ कविता का सार: यह कविता साहस, धैर्य और राष्ट्रभक्ति का
संदेश देती है। इसमें
बालकों को, युवाओं को
और हर नागरिक को
यह प्रेरणा दी गई है
कि वे बिना रुके,
बिना झुके, अपने लक्ष्य की
ओर बढ़ते रहें — चाहे राह में
कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों
न हों। 🖋️ मुख्य विषय-वस्तु:
📚 प्रसंग और उपयोग: यह कविता अक्सर विद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में शामिल की
जाती है (जैसे NCERT की
कक्षा 6 की पुस्तक "दूर्वा" में), और राष्ट्रभक्ति कार्यक्रमों, स्कूल सभाओं, तथा प्रेरणात्मक भाषणों में पढ़ी या
गाई जाती है Linkls- 1 : http://kavitakosh.org/kk/वीर_तुम_बढ़े_चलो_/_द्वारिका_प्रसाद_माहेश्वरी 2 : https://www.hindwi.org/kavita/badhe-chalo-dwarika-prasad-maheshwari-kavita वीर
तुम बढ़े चलो! धीर
तुम बढ़े चलो! हाथ
में ध्वजा रहे बाल दल
सजा रहे ध्वज
कभी झुके नहीं दल
कभी रुके नहीं वीर
तुम बढ़े चलो! धीर
तुम बढ़े चलो! सामने
पहाड़ हो सिंह की
दहाड़ हो तुम
निडर डरो नहीं तुम
निडर डटो वहीं वीर
तुम बढ़े चलो! धीर
तुम बढ़े चलो! प्रपात
हो कि रात हो
संग हो न साथ
हो सूर्य
से बढ़े चलो चंद्र
से बढ़े चलो वीर,
तुम बढ़े चलो धीर,
तुम बढ़े चलो। एक ध्वज लिए हुए
एक प्रण किए हुए मातृ
भूमि के लिए पितृ
भूमि के लिए वीर
तुम बढ़े चला! धीर
तुम बढ़े चलो! अन्न
भूमि में भरा वारि
भूमि में भरा यत्न
कर निकाल लो रत्न भर
निकाल लो वीर
तुम बढ़े चलो! धीर
तुम बढ़े चलो!
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