Friday, May 10, 2019

"वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!-प्रयाण गीत

"वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!" एक प्रेरणादायक और देशभक्ति से ओत-प्रोत कविता है, जिसे द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने रचा है

 कविता का सार:

यह कविता साहस, धैर्य और राष्ट्रभक्ति का संदेश देती है। इसमें बालकों को, युवाओं को और हर नागरिक को यह प्रेरणा दी गई है कि वे बिना रुके, बिना झुके, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहेंचाहे राह में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों हों।

🖋️ मुख्य विषय-वस्तु:

  • ध्वज और दल का प्रतीकात्मक प्रयोग:
    यह राष्ट्र और संगठन की एकता और अडिगता को दर्शाता है।
  • प्राकृतिक बाधाओं का उल्लेख:
    पहाड़, सिंह की दहाड़, रात, प्रपातये सब जीवन की चुनौतियों के प्रतीक हैं।
  • निडरता और निष्ठा:
    कविता हमें सिखाती है कि डर को पीछे छोड़कर, निडर होकर आगे बढ़ना ही सच्चा वीरत्व है।
  • मातृभूमि और पितृभूमि के लिए समर्पण:
    यह पंक्तियाँ देशभक्ति की भावना को और भी गहराई से दर्शाती हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों का दोहन:
    "अन्न भूमि में भरा, वारि भूमि में भरा..." — यह पंक्तियाँ परिश्रम और समृद्धि की ओर संकेत करती हैं।

📚 प्रसंग और उपयोग:

यह कविता अक्सर विद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में शामिल की जाती है (जैसे NCERT की कक्षा 6 की पुस्तक "दूर्वा" में), और राष्ट्रभक्ति कार्यक्रमोंस्कूल सभाओं, तथा प्रेरणात्मक भाषणों में पढ़ी या गाई जाती है 

Linkls-

1

: http://kavitakosh.org/kk/वीर_तुम_बढ़े_चलो_/_द्वारिका_प्रसाद_माहेश्वरी

2

: https://www.hindwi.org/kavita/badhe-chalo-dwarika-prasad-maheshwari-kavita

 

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

 

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे

ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

 

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

 

प्रपात हो कि रात हो संग हो साथ हो

सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो

वीर, तुम बढ़े चलो धीर, तुम बढ़े चलो।

 

एक ध्वज लिए हुए एक प्रण किए हुए

मातृ भूमि के लिए पितृ भूमि के लिए

वीर तुम बढ़े चला! धीर तुम बढ़े चलो!

 

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा

यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

 

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज
कभी झुके नहीं दल कभी रुके
नहीं
वीर
तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम
निडर डरो नहीं तुम निडर डटो
वहीं
वीर
तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

प्रपात हो कि रात हो संग हो साथ हो
सूर्य
से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े
चलो
वीर
, तुम बढ़े चलो धीर, तुम बढ़े चलो।

एक ध्वज लिए हुए एक प्रण किए हुए
मातृ
भूमि के लिए पितृ भूमि के
लिए
वीर
तुम बढ़े चला! धीर तुम बढ़े चलो!

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न
कर निकाल लो रत्न भर निकाल
लो
वीर
तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!