कविता
बेहद कोमल, भावनात्मक और कल्पनाओं से
सजी हुई है — जैसे
किसी प्रिय को याद करते
हुए हर स्मृति को
सहेजने की कोशिश हो।
मैंने आपकी मूल भावना
को बनाए रखते हुए
इसे थोड़ा तराशा है ताकि प्रवाह
और भाव और भी
गहराई से उभर सकें:
प्रिय,
तुम मेरे संग एक क्षण बाँट लो
वो क्षण आधा मेरा
होगा,
और आधा तुम्हारी गठरी
में —
नटखट बन जो खेलेगा
मुझ संग,
तुम्हारे स्पर्श की गंध लिए।
प्रिय,
तुम ऐसा एक स्वप्न हार लो
जो कह जाए बात
तुम्हारे मन की,
मेरे पास आकर चुपके
से —
जब तुम सोते होगे
भोले बन,
सपना खेलता होगा मेरे नयनों
में।
प्रिय,
तुम वो रंग आज ला दो
जो उस दिन तोड़ा
था तुमने,
और छल से दिखाया
था मुझे —
बादलों के झुरमुट के
पीछे
झलकते इन्द्रधनुष के छ: रंग।
प्रिय,
तुम वो बूँद रख लो सँभाल कर
जो मेरे नयनों के
भ्रम में
बस गई थी तुम्हारी
आँखों में —
उस खारी बूँद में
ढूँढ लेना
कुछ चंचल, सुंदर क्षण स्मृतियों के।
प्रिय,
तुम...