हर किसी के दिल के अन्दर॥
प्रियतम की कूक सुनाई देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥
सुहाना लगता है सफर ॥
जब सांझ को साजन मिले॥
चेहरे से चेहरा को देखे॥
होठो में मुस्कान लिए॥
उनकी बोली से मोती निकले॥
मीठी बातें हंसे देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥
झिर-झिर पवन हिलोरे॥
सावन रिम-झिम हस हस बोले॥
चिडिया चूचू गीत सुनावत॥
मन की बगिया आनंद लुटावत॥
अकेले मिल कर धीरे से हंस कर॥
मन की बातिया बाते देती॥
हर किसी के आँखों में ढल के॥
प्रियतम की प्रीत दिखाई देती॥
अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और जीवन-कर्म के बीच की दूरी को निरंतर कम करने की कोशिश का संघर्ष....
Thursday, May 4, 2017
Wednesday, May 3, 2017
मुझ से करो न प्यार॥
बहुत दिनों तक हुई परीक्षा
अब रूखा व्यवहार न हो।
अजी, बोल तो लिया करो तुम
चाहे मुझ पर प्यार न हो॥
जरा जरा सी बातों पर
मत रूठो मेरे अभिमानी।
लो प्रसन्न हो जाओ
गलती मैंने अपनी सब मानी॥
मैं भूलों की भरी पिटारी
और दया के तुम आगार।
सदा दिखाई दो तुम हँसते
चाहे मुझ से करो न प्यार॥
यह सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई कविता "प्रियतम से" का एक अंश है। यह एक प्रेम कविता है जिसमें वक्ता अपनी गलतियों और कमजोरियों को स्वीकार करते हुए अपने प्रियतम से प्यार और दया की प्रार्थना कर रहा है।