Thursday, April 27, 2017

तुम्हारी भावनाएं

तुम्हारी आँखे
वैसी नहीं
जिन्हें कह सकूं नशीली
तुम्हारी मुस्कान
भी तो सजावटी नहीं
तुम्हारे दांत नहीं हैं
मोतियों जैसे
शक्लो-सूरत से भी
परी नहीं हो तुम।
पर फिर भी
सबसे बढ़कर हैं
तुम्हारी भावनाएं

Wednesday, April 12, 2017

प्रिय नहीं आना अब सपनों में

प्रिय नहीं आना अब सपनों में


स्मृति को तुम्हारे आलिंगन

कर रहने दो मुझे अपनों में

प्रिय नहीं आना अब सपनों में



पल उधेड़े कितने मैंने

उलझे थे उस इंद्र धनुष में

जिसको हमने साथ गढ़ा था

रंग भरे थे रिक्त क्षणों में

प्रिय नहीं आना अब सपनों में



रुमझुम गीतों के नूपुर में

जड़ी जो हमने गुनगुन बातें

उस सुर से बुन मैंने बाँधी

गाँठ स्वप्न और मेरे नयनों में

प्रिय नहीं आना अब सपनों में



कभी खनक उठते हँसते पल

कभी आँसू से सीले लम्हे

कभी मादक सी उन शामों को

बह जाने दो अब झरनों में

प्रिय नहीं आना अब सपनों में