जब ,
दहेज न मिलने पर भी लोग ...
बहुओं को जलाते नहीं थे
बच्चे स्कूलों के नतीजे आने पर
आत्महत्या नहीं करते थे
बच्चे चौदह-पन्द्रह साल तक
बच्चे ही रहा करते थे
बच्चे ही रहा करते थे
जब
गांव में खुशहाल खलिहान, हुआ करते थे
गांव में खुशहाल खलिहान, हुआ करते थे
मशीनें कम, इंसान ज्यादा हुआ करते थे
खुले बदन को टैटू, से छुपा रहे है लोग
बंगलो से ज्यादा संस्कार हुआ करते थे
जब
सयुंक्त परिवार में सब एक साथ रहा करते थे
आर्थिक उदारीकरण, को कम लोग पहचानते थे
तब मानवाधिकार, को कम लोग ही जानते थे
अब
मुझे उस ज़माने में ले चलो, जहा
समय के साथ जमाना बदला न हो
सधन्यवाद !
विवेक अंजन श्रीवास्तव