भवरों-सा फूल-फूल पे न गुनगुनाइए
ठुकरा के मुझे इस तरह न मुस्कुराइए
माना कि तेरे इश्क के काबिल नहीं हूं मैं
ऐसे तो न वफा की कसमें झूठ खाइए
मर-मर के जी रहे हैं तेरी दीद के लिए
नजरें मिलाऊं तो नहीं नजरे चुराइए
मौसम बहार का मुझे लगता उदास है
ऐसे न फिजा-ओ-गुलशन को रुलाइए
न दिन को चैन है नहीं आराम रात को
मेरे हसीं ख्वाब न ऐसे जलाइए
है कह रहा जमाना मुझे भूल गए हो
याद आ के बार-बार न मुझको रुलाइए।
साभार : - कुसुम सिन्हा